Raastreeey Ektaa par Nibandh 500 words me || class 10th Hindi Medium

Raastreeey Ektaa par Nibandh || राष्ट्रीय एकता से तात्पर्य किसी देश के नागरिकों के बीच एकजुटता और एकजुटता की भावना से है, भले ही उनकी पृष्ठभूमि, विश्वास और राय अलग-अलग हों। यह इस विचार को मूर्त रूप देता है कि भले ही लोगों के विचार और सांस्कृतिक प्रथाएँ अलग-अलग हों, लेकिन वे अपने देश के प्रति अपनी वफ़ादारी और प्यार में एकजुट रहते हैं। सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए यह एकता बहुत ज़रूरी है।

Raastreeey Ektaa par Nibandh 500 words me || hindi medium

Raastreeey Ektaa par Nibandh

राष्ट्रीय एकता पर निबंध 500 शब्दों में

♦ राष्ट्रीय एकता

अर्थ और महत्त्व, भारत में विभिन्नता, अनेकता में एकता, राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्व, परस्पर संघर्ष के दुष्परिणाम, समाधान।

अर्थ और महत्त्व:-

राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य है- राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न विचारों और भिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। ‘एकता’ शब्द ‘अविरोध’ को प्रकट करता है। अर्थात् देश में भिन्नताएँ हों, फिर भी सभी नागरिक राष्ट्र-प्रेम से ओतप्रोत हों। देश के नागरिक पहले ‘भारतीय’ हों, फिर हिंदू या मुसलमान।

भारत में विभिन्नता:-

भारत अनेकताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्मों, जातियों, वर्गों, संप्रदायों और भाषाओं के लोग निवास करते हैं। यहाँ के लोगों का रहन-सहन, खान-पान और पहनावा भी भिन्न है। भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ भी कम नहीं हैं।

अनेकता में एकता:-

भारत में विभिन्नता होते हुए भी एकता या अविरोध विद्यमान है। यहाँ सभी जातियाँ घुल-मिलकर रहती रही हैं। यहाँ प्रायः लोग एक-दूसरे के धर्म का आदर करते हैं। आदर न भी करें तो दूसरे के प्रति सहनशील हैं।

राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्व:-

भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए अनेक खतरे हैं। सबसे बड़ा खतरा है- कुटिल राजनीति। यहाँ के राजनेता ‘वोट-बैंक’ बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीज बोते हैं, कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्य धारा से अलग करते हैं। कभी किसी विशेष जाति, प्रांत या भाषा के हिमायती बनकर देश को तोड़ते हैं। जम्मू काश्मीर का विशेष दर्जा हो, खालिस्तान की माँग हो, आसाम या गोरखालैंड की पृथक्ता का आंदोलन हो, सबसे ऊपर वोट के प्रेत मँडराते नजर आते हैं। इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर रखना चाहते हैं। राष्ट्रीय एकता में अन्य बाधक तत्त्व हैं- विभिन्न धार्मिक नेता, जातिगत असमानता, आर्थिक असमानता आदि।

परस्पर संघर्ष के दुष्परिणाम:-

जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय घटक संघर्ष करते हैं तो उसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है। मामला आरक्षण का हो या अयोध्या के राम-मंदिर का, उसकी गूंज पूरे देश के जनजीवन को कुप्रभावित करती है। इतिहास प्रमाण है। आरक्षण के नाम पर देशभर में युवक जले, सड़कें रुकीं, संपत्तियाँ नष्ट हुई। अयोध्या का प्रकरण देश की सीमाओं को पार करके विदेशों में रह-रहे लोगों को भी कँपा गया।

समाधान:-

प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय एकता को बल कैसे मिले ? संघर्ष का शमन कैसे हो ? इसका एकमात्र उत्तर यही है कि- शांति नहीं तब तक जब तक सुख-भाग न सबका सम हो।

नहीं किसी को बहुत अधिक हो नहीं किसी को कम हो।। (कुरूक्षेत्र से) अर्थात् देश में सभी असमानता लाने वाले कानूनों को समाप्त किया जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू कानून आदि अलगाववादी कानूनों को तिलांजलि दी जाए। उसकी जगह एक राष्ट्रीय कानून लागू किया जाए। सब नागरिकों को एक-समान अधिकार प्राप्त हों। किसी को किसी नाम पर भी विशेष सुविधा या विशेष दर्जा न दिया जाय। भारत में तुष्टिकरण की नीति बंद हो।

राष्ट्रीय एकता को बनाने का दूसरा उपाय यह है कि हृदयों में परस्पर आदर का भाव जगाया जाए। यह काम साहित्यकार, कलाकार, विचारक और पत्रकार कर सकते हैं। वे अपनी लेखनी और कला से देशवासियों को एकता का मंत्र पढ़ा सकते हैं।

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