jac class 10 solution chapter 9 अनुवांशिकता एंव जैव विकास | hindi medium

Jac Board class 10 science chapter 9 अनुवांशिकता एंव जैव विकास Hindi Medium | Jac Board Solutions Class 10 science | Class 10 science chapter 9 अनुवांशिकता एंव जैव विकास

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jac class 10 solution chapter 9 अनुवांशिकता एंव जैव विकास 

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chapter 9 अनुवांशिकता एंव जैव विकास 

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Jac Board Class 10 science chapter 9: अनुवांशिकता एंव जैव विकास 

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Jac Class 10 Solution Chapter 9

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  • अभ्यास
  • Importent Question Answer 

अध्याय 9 : अनुवांशिकता एंव जैव विकास  ( Heredity and Biological Evolution )

आनुवंशिकी :- “जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत आनुवांशिक लक्षणों के संतान में पहुंचने की रीतियों एवं आनुवंशिक समानता एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं आनुवंशिक विज्ञान या आनुवंशिकी कहलाती है।

आनुवंशिकता:- जीवों में प्रजनन के द्वारा संतान उत्पन्न करने की अदभुत क्षमता होती है। संतानों में कुछ लक्षण माता-पिता से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुंचते रहते हैं, जिन्हें आनुवंशिक लक्षण कहते हैं। वंशागत लक्षणों (Inherited Characters) का अध्ययन आनुवंशिकता (Heredity) कहलाता है।

ग्रेगर जॉन मेंडल का योगदान :- आनुवंशिकी के क्षेत्र में ग्रेगर जॉन मेंडल के महत्वपूर्ण योगदान के कारण इन्हें आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है। ये आस्ट्रिया के पादरी थे। इन्होंने मटर के पौधों पर अनेक प्रयोग किए और उनके आधार पर कुछ निष्कर्षों को प्रतिपादित किया जिसकी रिपोर्ट 1866 में प्रकाशित की गई।

अपने प्रयोगों के आधार पर मेडल निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचे:-

  • आनुवंशिक लक्षणों को पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने वाले लक्षण को कारक कहा जो अब जीन के नाम से जाना जाता है।
  •  संकर संतान में यह कारण अब परिवर्तनशील होता है, फलस्वरूप अगली पीढ़ी में वह लक्षण पूर्ववत् प्रकट होते हैं।

विभिन्नता :- एक स्पीशीज के विभिन्न जीवों में शारीरिक अभिकल्प और डी ० एन० ए० में अन्तर विभिन्नता कहलाता है। ऐसी विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होती हैं। इसे आनुवंशिक विभिन्नता भी कहते हैं। ऐसी विभिन्नताओं में कुछ जन्म के समय से प्रकट हो जाती है। जैसे आँखों एवं बालों का रंग / शारीरिक गठन, लम्बाई में परिवर्तन आदि जन्म के बाद की विभिन्नताएँ हैं।

विभिन्नता के दो प्रकार :-

  •  शारीरिक कोशिका विभिन्नता 
  • जनन कोशिका विभिन्नता

शारीरिक कोशिका विभिन्नता :-

  •  यह शारीरिकी कोशिका में आती है। 
  • ये अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित नहीं होते।
  •  जैव विकास में सहायक नहीं है। 
  • इन्हें उपार्जित लक्षण भी कहा जाता है। 
  • उदाहरण :– कानों में छेद करना, कुत्तों में पूँछ काटना।

जनन कोशिका विभिन्नता :-

  •  यह जनन कोशिका में आती है।
  • यह अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं। 
  • जैव विकास में सहायक हैं।
  • इन्हें आनुवंशिक लक्षण भी कहा जाता है। 
  • उदाहरण :- मानव के बालों का रंग, मानव शरीर की लम्बाई।

जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन

विभिन्नताएँ :- जनन द्वारा  परिलक्षित होती हैं चाहे जन्तु अलैंगिक जनन हो या लैंगिक जनन।

लैंगिक जनन 

  • प्रजनन की वह क्रिया जिसमें दो युग्मकों (गैमीट / Gamete) के मिलने से बनी रचना युग्मज (जाइगोट) द्वारा नए जीव की उत्पत्ति होती है, लैंगिक जनन (sexual reproduction) कहलाती है। यदि युग्मक समान आकृति वाले होते हैं तो उसे समयुग्मक कहते हैं। समयुग्मकों के संयोग को संयुग्मन कहते हैं।

लैंगिक जनन :-

  • विविधता अपेक्षाकृत अधिक होगी |
  • क्रास संकरण के द्वारा, गुणसूत्र क्रोमोसोम के विसंयोजन द्वारा, म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) के द्वारा।

अलैंगिक जनन

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अधिकांश जंतुओं में प्रजनन की क्रिया के लिए संसेचन (शुक्राणु का अंड से मिलना) अनिवार्य है; परंतु कुछ ऐसे भी जंतु हैं जिनमें बिना संसेचन के प्रजनन हो जाता है, इसको आनिषेक जनन या अलैंगिक जनन (Asexual reproduction) कहते हैं।

अलैंगिक जनन :-

  • विभिन्नताएँ कम होंगी |
  • डी.एन.ए. प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं।

विभिन्नता के लाभ

  •  प्रकृति की विविधता के आधार पर विभिन्नता जीवों को विभिन्न प्रकार के लाभ हो सकते हैं। 
  • उदाहरण :- ऊष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवपणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है। 
  • पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्त का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनाता
    है।

मेंडल का योगदान

 मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए।

मेंडल को आनुवंशिकी के जनक के नाम से जाना जाता है। मैंडल ने मटर के पौधे के अनेक विपर्यासी (विकल्पी) लक्षणों का अध्ययन किया जो स्थूल रूप से दिखाई देते हैं। उदाहरणत :- गोल / झुरींदार बीज, लंबे / बौने पौधे, सफेद / बैंगनी फूल इत्यादि। उसने विभिन्न लक्षणों वाले मटर के पौधों को लिया जैसे कि लंबे पौधे तथा बौने पौधे। इससे प्राप्त संतति पीढ़ी में लंबे एवं बौने पौधों के प्रतिशत की गणना की।

मेंडल द्वारा मटर के पौधे का चयन क्यों किया :- 

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  • मेंडल ने मटर के पौधे का चयन निम्नलिखित गुणों के कारण किया।
  • मटर के पौधों में विपर्यासी विकल्पी लक्षण स्थूल रूप से दिखाई देते हैं।
  • इनका जीवन काल छोटा होता है।
  • सामान्यतः स्वपरागण होता है परन्तु कृत्रिम तरीके से परपरागण भी कराया जा सकता है।
  • एक ही पीढ़ी में अनेक बीज बनाता है।

एकल संकरण (मोनोहाइब्रिड)

मटर के दो पौधों के एक जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास संकरण को एकल संकर क्रास कहा जाता है। उदाहरण:- लंबे पौधे तथा बौने पौधों के मध्य संकरण।

अवलोकन :-

  •  प्रथम संतति पीढ़ी अथवा F, में कोई पौधा बीच की ऊँचाई का नहीं था। सभी पौधे लंबे थे। इसका अर्थ था कि दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है। 
  • F2 पीढ़ी में ¾ लंबे पौधे वे ¼ बौने पौधे थे। 
  • फीनोटाइप F2 – 3:1 (3 लंबे पौधे : 1 बौना पौधा)
  • जीनोटाइप F2 – 1:2:1 
  • TT, Tt, tt का संयोजन 1: 2: 1 अनुपात में प्राप्त होता है।

निष्कर्ष:-

  • II व It दोनों लंबे पौधे हैं, यद्यपि tt बौना पौधा है।
  • 1 की एक प्रति पौधों को लंबा बनाने के लिए पर्याप्त है। जबकि बौनेपन के लिए की दोनों प्रतियाँ tt होनी चाहिए।
  • T जैसे लक्षण प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, । जैसे लक्षण अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं।

द्वि – संकरण द्वि / विकल्पीय संकरण

◊ मटर के दो पौधों के दो जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास

◊ द्विसंकर क्रॉस के परिणाम जिनमें जनक दो जोड़े विपरीत विशेषकों में भिन्न थे जैसे बीच का रंग और बीच की आकृति। 

  • F₂ गोल, पीले बीज : 9
  • गोल, हरे बीज : 3
  • झुरींदार, पीले बीज : 3
  • झुरींदार, हरे बीज: 1

 इस प्रकार से दो अलग अलग (बीजों की आकृति एवं रंग) को स्वतंत्र वंशानुगति होती है।

आनुवंशिकता के नियम

प्रथम नियम के अनुसार मैंडल ने बताया की किसी जीव की अनुवंशकिता उसके परिजनों यानि माता पिता की जनन द्वारा होती है। इसका प्रयोग इन्होने मटर के पौधे पर किया था। यदि कोई दो कारक हो ओर अगर वो दोनों सामान न हो तो इनमे से एक कारक दूसरे कारक पर आसानी से प्रभावी हो जायेगा। इसे प्रभाविकता का नियम भी कहते है।

मेंडेल के आनुवांशिक के नियम

यह नियम निम्न प्रकार से हैं:-

  •  प्रभावित का नियम।
  • पृथक्करण का नियम / विसंयोजन का नियम।
  • स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम।

प्रभाविता का नियम:- जब मेंडल ने भिन्न- भिन्न लक्षणों वाले समयुग्मजी पादपों में जब संकर संकरण करवाया तो इस क्रॉस में मेंडेल ने एक ही लक्षण प्रदर्शित करने वाले पादपों का ही अध्ययन किया। तो उसने पाया कि एक प्रभावी लक्षण अपने आप को अभिव्यक्त करता है। और एक अप्रभावी लक्षण अपने आप को छिपा लेता है। इसी को प्रभाविता कहा गया है और इस नियम को मंडल का प्रभाविता का नियम कहा जाता है।

पृथक्करण का नियम / विसंयोजन का नियम / युग्मकों की शुद्धता का निमय: युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्म विकल्पी अलग हो जाते है। अर्थात् एक युग्मक में सिर्फ एक विकल्पी हो जाता है। इसलिए इसे पृथक्करण का नियम कहते है।

युग्मक किसी भी लक्षण के लिए शुद्ध होते है।

स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम :- यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है। इस नियम के अनुसार किसी द्विसंकर संरकरण में एक लक्षण की वंशगति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतः स्वतंत्र होती है। अर्थात एक लक्षण के युग्मा विकल्पी दूसरे लक्षण के युग्मविकल्पी से निर्माण के समय स्वतंत्र रूप से पृथक व पुनव्यवस्थित होते है।

इसे में लक्षण अनुपात 9:3:3:1 होता है।

लिंग निर्धारण

मानव के प्रत्येक कोशिका में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते हैं जिसमें 22 जोड़े को अलिंग गुणसूत्र (Autosomes) तथा अंतिम 23वें जोड़ा को लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) कहते हैं। द्विगुणित अवस्था में मादा का लिंग गुणसूत्र xx तथा नर का लिंग गुणसूत्र XY होते है। नर के इन्हीं गुणसूत्रों के द्वारा मानव में लिंग निर्धारण होता है।

लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी करक :-

  •  कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण अंडे के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है उदाहरण :- घोंघा
  • कुछ प्राणियों जैसे कि मानव में लिंग निर्धारण लिंग सूत्र पर निर्भर करता है। xx (मादा) तथा XY (नर)

मानव में लिंग निर्धारण

  • आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं। सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की अपनी माता से x गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। अत: बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है। 
  • जिस बच्चे को अपने पिता से x गुणसूत्र वंशानुगत हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से Y गुणसूत्र वंशागत होता है, वह लड़का होता है।

विकास

वह निरन्तर धीमी गति से होने वाला प्रक्रम जो हजारों करोड़ों वर्ष पूर्व जीवों में शुरू हुआ नई स्पीशीज का उद्भव हुआ विकास कहलाता है।

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उपार्जित लक्षण

वे लक्षण जिसे कोई जीव अपने जीवन काल में अर्जित करता है उपार्जित लक्षण कहलाता है। उदाहरण :- अल्प पोषित भृंग के भार में कमी।

उपार्जित लक्षणों का गुण :

  • ये लक्षण जीवों द्वारा अपने जीवन में प्राप्त किए जाते हैं। ये जनन कोशिकाओं के  डी.एन.ए. (DNA) में कोई अंतर नहीं लाते व अगली पीढ़ी को वंशानुगत / स्थानान्तरित नहीं होते। 
  • जैव विकास में सहायक नहीं है। उदाहरण:- अल्प पोषित भंग के धार में कमी।

आनुवंशिक लक्षण

वे लक्षण जिसे कोई जीव अपने जनक से प्राप्त करता है आनुवंशिक लक्षण कहलाता है।

उदाहरण:- मानव के आँखों व बालों के रंग।

आनुवंशिक लक्षण के गुण :-

  •  ये लक्षण जीवों की वंशानुगत प्राप्त होते हैं।
  • ये जनन कोशिकाओं में घटित होते हैं तथा अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं।
  •  जैव विकास में सहायक है। उदाहरण:- मानव के आँखों व बालों के रंग।

जाति उदभव

पूर्व स्पीशीज से नई स्पीशीज का निर्माण ही जाति उद्भव कहलाता है। वर्तमान स्पीशीज का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित रहना आवश्यक है क्योकि यह नई स्पीशीज का उदभव करते है। इन स्पीशीज के सदस्यों को जीवित रहने के लिए कुछ बाहरी लक्षण में परिवर्तन करना पड़ता है।

जाति उद्‌भव किस प्रकार होता है

  •  जीन प्रवाह :- उन दो समष्टियों के बीच होता है जो पूरी तरह से अलग नहीं हो पाती है किंतु आंशिक रूप से अलग – अलग हैं।
  •  आनुवंशिक विचलन :- किसी एक समष्टि की उत्तरोत्तर पीढ़ियों में जींस की बारंबरता से अचानक परिवर्तन का उत्पन होना। 
  • प्राकृतिक चुनाव :- वह प्रक्रम जिसमें प्रकृति उन जीवों का चुनाव कर बढ़ावा देती है जो बेहतर अनुकूलन करते हैं। • भौगोलिक पृथक्करण :- जनसंख्या में नदी, पहाड़ आदि के कारण आता है। इससे दो उपसमष्टि के मध्य अंतर्जनन नहीं हो पाता।

आनुवंशिक विचलन का कारण

  • यदि DNA में परिवर्तन पर्याप्त है।
  • गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन।

अभिलक्षण

बाह्य आकृति अथवा व्यवहार का विवरण अभिलक्षण कहलाता है। दूसरे शब्दों में, विशेष स्वरूप अथवा विशेष प्रकार्य अभिलक्षण कहलाता है। उदहारण :-

  •  हमारे चार पाद होते हैं, यह एक अभिलक्षण है। 
  • पोधों में प्रकाशसंश्लेषण होता है, यह भी एक अभिलक्षण है।

समजात अभिलक्षण

विभिन्न जीवों में यह अभिलक्षण जिनकी आधारभूत संरचना लगभग एक समान होती है। यद्यपि विभिन्न जीवों में उनके कार्य भिन्न- भिन्न होते हैं।

उदाहरण:- पक्षियों, सरीसृप, जल स्थलचर, स्तनधारियों के पदों की आधारभूत संरचना एक समान है, किन्तु यह विभिन्न कशेरुकी जीवों में भिन्न भिन्न कार्य के लिए होते हैं।

समजात अंग यह प्रदर्शित करते हैं कि इन अंगों की मूल उत्पत्ति एक ही प्रकार के पूर्वजों से हुई है व जैव विकास का प्रमाण देते हैं।

समरूप अभिलक्षण

वह अभिलक्षण जिनकी संरचना व संघटकों में अंतर होता है, सभी की उत्पत्ति भी समान नहीं होती किन्तु कार्य समान होता है।

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उदाहरण:- पक्षी के अग्रपाद एवं चमगादड़ के अग्रपाद।

समरूप अंग यह प्रदर्शित करते हैं कि जन्तुओं के अंग जो समान कार्य करते हैं, अलग- अलग पूर्वजों से विकसित हुए हैं।

जीवाश्म

“प्राचीनकालीन अनेक प्रकार के जीव, पौधे एवं जन्तुओं के मृत अवशेष जो चट्टानों परिरक्षित होते है, जीवाश्म कहलाते है। जीवाश्मों का संग्रह एवं आयु के अनुसार उनका अनुक्रम जैव विकास प्रक्रम के क्रम को दर्शाता है कि किस प्रकार जीवों का विकास शनै:- शनैः हुआ।

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उदहारण :-

  • आमोनाइट –   जीवाश्म – अकशेरुकी 
  • ट्राइलोबाइट-  जीवाश्म – अकशेरुकी 
  • नाइटिया –  जीवाश्म – मछली 
  • टाजोसोरस –  जीवाश्म –  डाइनोसॉर कपाल

जीवाश्म कितने पुराने हैं

खुदाई करने पर पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए होते हैं।

New dinosaur fossil found in Japan

फॉसिल डेटिंग:- जिसमें जीवाश्म में पाए जाने वाले किसी एक तत्व के विभिन्न समव्यानिकों का अनुपात के आधार पर जीवाश्म का समय निधर्धारण किया जाता है।

विकास एवं वर्गीकरण

विकास एवं वगीकरण दोनों आपस में जुड़े हैं।

  • जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के संबंधों का प्रतिबिंब है। 
  • दो स्पीशीज के मध्य जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध भी उतना ही निकट का होगा। 
  • जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्‌भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा। 
  • जीवों के मध्य समानताएँ हमें उन जीवों को एक समूह में रखने और उनके अध्ययन का अवसर प्रदान करती है।

विकास के चरण

विकास क्रमिक रूप से अनेक पीढ़ियों में हुआ।

1. योग्यता को लाभ:- जैसे आँख का विकास- जटिल अंगों का विकास डी.एन.ए. में मात्र एक परिवर्तन द्वारा संभव नहीं है, ये क्रमिक रूप से अनेक पीढ़ियों में होता है। 

  • प्लेलेटिया में अति सरल आँख होती है।
  •  कीटों में जटिल आँख होती है।
  • मानव में द्विनेत्री आँख होती है।

2. गुणता के लाभ :- जैसे

पंखों का विकास :- पंख (पर) -ठंडे मौसम में ऊष्मारोधन के लिए विकसित हुए थे, कालांतर में उड़ने के लिए भी उपयोगी हो गए।

उदाहरण:- डाइनोसॉर के पंख थे, पर पंखों से उड़ने में समर्थ नहीं थे। पक्षियों ने पटों को उड़ने के लिए अपनाया।

कृत्रिम चयन

बहुत अधिक भिन्न दिखने वाली संरचनाएं एक समान परिकल्प में विकसित हो सकती है। दो हजार वर्ष पूर्व मनुष्य जंगली गोभी को एक खाद्य पौधे के रूप में उगाता था तथा उसने चयन द्वारा इससे विभिन्न सब्जियों विकसित की। इसे कृत्रिम चयन कहते हैं।

आण्विक जातिवृत

25 Medicinal Herbs to Look For in Your Backyard
  • यह इस विचार पर निर्भर करता है कि जनन के दौरान डी. एन. ए. में होने वाले परिवर्तन विकास की आधारभूत घटना है।
  • दूरस्थ संबंधी जीवों के डी.एन.ए. में विभिन्नताएँ अधिक संख्या में संचित होंगी।

मानव विकास के अध्ययन के मुख्य साधन

  • उत्खनन
  • डी.एन.ए. अनुक्रम का निर्धारण समय निर्धारण
  • जीवाश्म अध्ययन

Q1.) मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?

उत्तर:- मेंडल ने मटर के पौधों के अनेक विपर्यासी विकल्पी लक्षणों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि विपर्यासी (विकल्पी) लक्षणों वाले पौधों के स्वपरागण के द्वारा जनन के फलस्वरूप प्रथम पीढ़ी F1 में केवल एक ही लक्षण प्रदर्शित हुआ और दूसरा लक्षण प्रदर्शित नहीं हुआ। इससे यह सिद्ध होता है कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं।

Q2.) मेंडल के प्रयोगों से कै से पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?

उत्तर:- मेंडल ने गोल बीज वाले लंबे पौधों का झुर्रीदार बीजों वाले बिने पौधों से संकरण कराया तो संतति में सभी पौधे प्रभावी लक्षणों के थे। परंतु संतति में कुछ पौधे गोल बीज वाले, कुछ झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधे थे। अतः ये लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं।

Q3.)एक ‘A-रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग – ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्‍त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन सा विकल्प लक्षण- रुधिर वर्ग- ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण हैं? अपने उत्तर का स्पष्‍टीकरण दीजिए।

उत्तर:- रुधिर वर्ग ‘O’ प्रभावी लक्षण है क्योंकि वह रुधिर वर्ग ‘O’ F
पीढ़ी में प्रकट हुआ है। यह सूचना प्रमावी और अप्रभावी लक्षण को प्रकट करने के लिए पर्याप्त है।
रुधिर चर्ग-A (प्रतिजन- A) के लिए जीन प्रभावी है और जीन प्रारूप
IA IA या IA i है। स्त्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है। इसलिए उसका जीन प्रारूप ‘ii’ समयग्मी है। पत्री के रुधिर वर्ग ‘O’ को क्रॉस से इस प्रकार दिखाया जा सकता है |

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रुधिर वर्ग ‘O’ उसी स्थिति में होता है जब रक्त में प्रतिजन A और प्रतिजन B नहीं होता है।

Q4.) मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?

उत्तर:-  मानव में बच्चों के लिंग का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है। सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की, अपनी माता से ‘X’ गुणसूत्र प्राप्त करते हैं| जिस बच्चे को अपने पिता से ‘X’ गुणसूत्र वंशानुगत प्राप्त हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से ‘Y’ गुणसूत्र वंशानुगत होता है, वह लड़का |

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Q5.) मेंडल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्‍प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्‍प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्‍प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी—
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw

ऊतर:- मेंडल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी

Q6.) एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी?
अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:- सभी बच्चों में अपने माता-पिता के लक्षण प्रकट होते हैं। माता-पिता से हल्के रंग की आँखों का बच्चों में आ जाना सहज स्वभाविक है। इस अवस्था में तो आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है, परन्तु इसे हर बच्चे को अवस्था से प्रभावी नहीं कह सकते। यह अप्रभावी भी हो सकता है।

Q7.) कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।

ऊतर:- इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमें एक काले रंग का कुता व एक सफ़ेद रंग की कुतिया लेनी होगी। यदि दोनों के मध्य संकरण करने के पश्चात सभी संतानें काली रंग की उत्पन्न होती है तो हम कह सकते है कि काला रंग प्रभावी है तथा सफ़ेद रंग अप्रभावी है।

Q8.) संतति में नर और मादा जनकों द्वारा अनुवांशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है ?

उत्तर:- प्रत्येक क्रोमेटिड लैंगिक प्रजनन में सक्रिय भाग लेता है जिन्हें नर तथा मादा युग्मक कहते हैं। केवल एक युग्मक ही लैंगिक जनन में भाग नहीं ले सकता। अतः नर तथा मादा पित्रों के युग्मक लैंगिक जनन में सक्रिय भाग लेते हैं तथा आनुवंशिकता को सुनिश्चित करते हैं।

Q1.) आनुवंशिकी की परिभाषा दें। आनुवंशिकता में मेंडल का क्या योगदान है?

उत्तर:- जीव विज्ञान की वह विशेष शाखा जिसके अन्तर्गत आनुवंशिकता की सूक्ष्म क्रिया विधि, आनुवंशिकता के प्रभाव एवं आनुवंशिकता से सम्बन्धित परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी कहलाती है। ग्रेगर जॉन मेंडल (1822-1884) ने जीव विज्ञान की इस शाखा आनुवंशिकी को अति महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसलिए उन्हें आनुवंशिकी का जनक माना जाता है। उन्होंने मटर के दानों पर संकरण के तरह-तरह के प्रयोग किए थे और तीन नियमों को प्रतिपादित किया था-

  1. प्रभाविता का नियम- संकरण में भाग लेने वाले पौधों का प्रभावी गुण प्रकट होता है और अप्रभावी गुण छिप जाता है।
  2. पृथक्करण का नियम- युग्मकों की रचना के समय कारकों के जोड़े के कारक अलग-अलग हो जाते हैं। इन दोनों में से केवल एक युग्मक के पास पहुँचता है। दोनों कारक कभी भी एक साथ युग्मक में नहीं जाते ।
  3. अपव्यूहन का नियम- जीव गुण के कारक एक-दूसरे को प्रभावित किए बिना अपने आप उन्मुक्त रूप से युग्मकों में जाते हैं और अपने आप को प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिए, द्विसंकर क्रॉस की दूसरी पीढ़ी की संतानों में सभी कारकों के गुण अलग-अलग दिखाई देते हैं पर पहली पीढ़ी में अपने प्रभावी गुण ही प्रकट करते हैं

Q2.) जीन क्या है ? आनुवंशिकता में इसकी क्या भूमिका है ?

उत्तर:- गुण सूत्रों पर पाई जाने वाली भौतिक इकाइयाँ जो पैत्रिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाने का कार्य करती है, जीन कहलाती है। जीन आनुवंशिक गुणों का वहन करती हैं। ये पैत्रिक लक्षणों को अगली पीढ़ी में पहुँचाती है।

जीनों की आनुवंशिकता में निम्नांकित भूमिका है-

  1. इनमें द्विगुणन की क्षमता होती है जिसके कारण ये सभी संततियों में पहुँच जाती हैं।
  2. ये पुनर्योजन की इकाइयाँ हैं तथा ये क्रोसिंग ओवर में भाग ले सकती हैं।
  3. ये उत्परिवर्तित होकर विभिन्नताएँ उत्पन्न कर सकती है।
  4. ये शारीरिक लक्षणों एवं क्रियाओं से संबद्ध होती हैं।

Q3.) जीनों की किन्हीं तीन विशेषताओं का उल्लेख करें।

उत्तर:- जीनों की विशेषताएँ-

  1. ये आनुवंशिक पदार्थों की इकाइयाँ हैं जिनमें द्विगुणन की क्षमता होती हैं।
  2. ये पुनर्योजन की इकाइयाँ हैं और ये क्रासिंग ओवर क्रिया में भाग ले सकती हैं।
  3. जीन उत्परिवर्तित होकर भिन्नताएँ उत्पन्न करती हैं। उत्परिवर्तन से जीन में संग्रहीत सूचनाएँ बदल जाती हैं।
  4. ये शारीरिक लक्षणों एवं क्रियाओं से संबद्ध होती है और वैसे लक्षणों अथवा वैसी क्रियाओं को प्रकट करने में सहायक है।

Q4) आनुवंशिकी का मानव कल्याण से क्या संबंध है ?

उत्तर:- आनुवंशिकी के विकास से जैव प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है। जैव-प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव कल्याण एवं आर्थिक विकास के क्षेत्रों में भारी प्रगति हो रही है जिनमें से प्रमुख निम्न प्रकार हैं-

  1.  आनुवंशिकी के विकास के कारण पौधों में जीनों के उत्परिवर्तन तथा पुनर्योजन करके कृषि तथा बागवानी के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है।
  2. जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा उच्च उत्पादन वाली फसलों को उत्पन्न किया जा रहा है।
  3. जैव-प्रौद्योगिकी द्वारा पशुओं और कुक्कुट की उन्नतशील प्रजातियाँ विकसित की जा रही है।
  4. आनुवंशिकी के तकनीकी ज्ञान का प्रयोग करके पौधों तथा जंतुओं की रोग-रोधी जातियों का विकास किया जा रहा है।
  5. आनुवंशिकी के ज्ञान का सहारा लेकर कृषि में हरित क्रांति एवं पशुपालन के क्षेत्र में श्वेत क्रांति और रजत क्रांति लाई गई है।

Q5.) आनुवंशिक विचलन क्या है ?

उत्तर:- जब प्राकृतिक अवरोध अथवा अन्य कारणों से एक ही जाति के कुछ सदस्य आनुवंशिक रूप से भिन्न हो जाते हैं तब इस घटना को आनुवंशिक विचलन कहते हैं।

Q6.) निम्न को समझाएँ-

  1.  जीन प्रवाह,
  2. जीन पूल ।

उत्तर:- 

  1. जीन प्रवाह- एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीनों का स्थानांतरण जीन प्रवाह कहलाता है। इसमें विभिन्न प्रकार की घटनाएँ सम्मिलित होती है। जैसे- परागकणों का दूर तक उड़कर जाना, मनुष्यों का दूसरे देशों में जाना आदि।
  2. जीन पूल- किसी आबादी के ऐसे सभी सदस्यों के जीनों की कुल संख्या जिनमें लैंगिक जनन की क्षमता पाई जाती है, जीन पूल कहलाती है।

Q7.) उपार्जित लक्षण किन्हें कहते हैं ? क्या उपार्जित लक्षणों की वंशागति होती है ?

उत्तर:- ऐसे लक्षणों को जो किसी जीव को उसके माता-पिता से आनुवंशिकता द्वारा नहीं मिलते लेकिन वह जीव उन्हें स्वयं ही प्रकृति द्वारा प्राप्त करता है उपार्जित लक्षण कहते हैं।

डार्विन के अनुसार ये लक्षण आनुवंशिक हो जाते हैं और अगली पीढ़ी में जाकर विभिन्नताएँ उत्पन्न करते हैं जिससे नयी जाति की उत्पत्ति होती है। परन्तु डार्विन के बाद वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया कि उपार्जित लक्षणों की वंशागति नहीं होती है।

Q8.) मैडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं ?

उत्तर:- मेंडल के प्रयोग से यह पता चलता है कि यदि दो परस्पर विरोधी लक्षणों वाले पौधों के बीच यदि कृत्रिम परागण कराया जाता है तो प्रथम पीढ़ी (F, पीढ़ी) में केवल एक ही लक्षण प्रकट होता है जबकि दूसरा लक्षण भी उन पौधों में सुरक्षित रहता है और अप्रभावी अवस्था में होता है। दूसरी पीढ़ी में इस लक्षण के प्रकट हो जाने से इस बात की पुष्टि होती है।

Q9.) वे कौन-से कारक हैं जो नई स्पीशीज के उद्भव में सहायक है ?

उत्तर:-

  1.  भौगोलिक वितरण तथा एकाकीपन,
  2.  जीनों का विचलन,
  3. आनुवंशिक भिन्नताएँ।

Q10.) मानव विकास के अध्ययन के लिए किन विधियों का प्रयोग किया जाता है ?

उत्तर:- मानव विकास के अध्ययन के लिए निम्नांकित विधियों का प्रयोग किया जाता है-

  1. उत्खनन या खुदाई,
  2.  समय निर्धारण या प्राप्त जीवाश्म की आयु का आकलन करना,
  3. जीवश्म अध्ययन ,
  4.  DNA के अनुक्रम का निर्धारण ।

Q11.)  समजात अंग एवं समरूप अंगों का उदाहरण देकर समझाएँ।

उत्तर:- अर्मजात अंग- विभिन्न जीवों में वे अंग जो आकृति तथा उत्पत्ति में समानता रखते हैं समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, मेढक के अग्रपाद, पक्षी के पंख, चमगादड़ के पंख, ह्वेल के फ्लिपर्स, घोड़े के अग्रपाद तथा मानव के हाथ आदि उत्पत्ति में समान होते हैं परन्तु वे कार्य में परस्पर भिन्नता रखते हैं।

समरूप अंग:- विभिन्न जीवों के वे अंग जो कार्य में समान होते हैं परन्तु उत्पत्ति में भिन्न होते हैं। ऐसे अंगों को समरूप अंग कहते हैं। उदाहरण- तितली के पंख, पक्षी के पंख आदि कार्य में समान हैं परन्तु उत्पत्ति में
वे भिन्न हैं।

Q12.) प्रकृति में नई जातियों की उत्पति कैसे होती है ?

उत्तर:- डार्विन के मतानुसार विभिन्नताओं के आनुवंशिक होने पर जीव अपने पूर्वजों से भिन्न हो जाते हैं। धीरे-धीरे कई पीढ़ियों में लक्षण इतने बदल जाते हैं कि उत्पन्न होने वाले जीव अपने पूर्वजों से पूर्णतः भिन्न हो जाते हैं। इसे ही नई जाति की उत्पत्ति कहा गया है

Q13.) डी० एन० ए० आनुवंशिकता का आधार है। कैसे ?

उत्तर:- डी० एन० ए० आनुवंशिकता का आधार है क्योंकि-

  1.  इसमें द्विगुणन की क्षमता होती है।
  2.  यह सभी कोशिकाओं में पाया जाता है।
  3. डी० एन० ए० की अनुकृति मूल DNA अणु की तरह ही होती है।
  4. डी० एन० ए० का द्विगुणन कोशिका विभाजन से पहले हो जाता है।
  5. यदि डी० एन० ए० की रचना में परिवर्तन हो जाए तो जीव के शरीर में उत्परिवर्तन के लक्षण दिखाई देंगे।
  6. डी० एन० ए० स्वयं एक आनुवंशिक पदार्थ है। 

Q14.) एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों ?

उत्तर:- एकल जीव द्वारों उपार्जित लक्षण सामान्यतः आनुवंशिक नहीं होते

क्योंकि-

  1. ऐसे लक्षण प्रायः अस्थायी तौर पर उत्पन्न होते हैं।
  2.  उपार्जित लक्षण प्रायः आनुवंशिक नहीं होते हैं क्योंकि आनुवंशिक लक्षण लैंगिक जनन के समय डी० एन० ए० में होने वाले परिवर्तनों से उत्पन्न होते हैं।

Q15.) अवशेषी अंग क्या हैं ? एक उदाहरण दें।

उत्तर:- अवशेषी अंग- जीवधारियों में पाए जाने वाले ऐसे अंग जो आवश्यकता और उपयोग के अभाव में मात्र अवशेष के रूप में बचे हुए पाए जाते है। अवशेषी अंग कहलाते हैं।

उदाहरण- मनुष्य के आँख की निमेशक झिल्ली।

Q16.) समजात अंग की परिभाषा लिखें। वे विकास के समर्थन में किस प्रकार प्रमाण प्रस्तुत करते हैं ?

उत्तर:- वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना समान हो लेकिन उनके कार्य भिन्न हों, उन्हें समजात अंग कहते हैं। जैसे- मनुष्य के हाथ और पक्षी के डैने।

समजात अंगों से यह निष्कर्ष निकलता है कि समान अंग भिन्न आवासीय दशाओं में किस प्रकार भिन्न दिखने लगते हैं। अंततः नाई जीव जाति के उद्भव के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। अतः ऐसे अंग भिन्न दिखाई देने वाली विभिन्न स्पीशीज के बीच विकासीय संबंध को दिखाते हैं।

Q17.) चमगादड़ के पंख और पक्षियों के पंख समरूप अंग है, कैसे ?

उत्तर:- चमगादड़ के पंख और पक्षियों के पंख समरूप अंग है क्योंकि दोनों का कार्य समान है परन्तु इनकी उत्पत्ति एक दूसरे से भिन्न है। चमगादड़ के पंख उसकी फैली हुई अँगुली के बीच की त्वचा के फैलने से बना है। जबकि पक्षी के पंख उसके पूरे अग्रबाहु की त्वचा के फैलाव से बना है।

Q18.) जीवाश्म क्या हैं ? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं ?

उत्तर:- भूतकालीन जन्तुओं और पौधों के कठोर अंगों की छाप अथवा उनके अवशेष जो पृथ्वी की चट्टानों पर या उनके बीच में दबे हुए पाये जाते हैं, जीवाश्म कहलाते हैं। जीवाश्म जैव विकास के विभिन्न चरणों या अवस्थाओं को दर्शाते हैं।

उदाहरण:-आर्किआप्टेरिक्स ।

जीवाश्म हमें जैव विकास के बारे में निम्नांकित बातें दर्शाते हैं-

  1.  ऐसी कौन-सी स्पीशीज हैं जो कभी जीवित थीं। परन्तु अब लुप्त हो गई हैं।
  2. ऐसे जीवों के अवशेष जीवाश्म के रूप में मिले हैं जो कि एक वर्ग के जीवों का उनसे विकसित उच्च वर्ग के बीच की कड़ी के जीवों का स्वरूप बताते हैं। जैसे आर्कीऑप्टेरिक्स जीवाश्म में कुछ लक्षण सरीसृप के हैं, तो अन्य लक्षण पक्षियों के। यह इंगित करता है कि पक्षी सरीसृप से विकसित हुए हैं।
  3. फॉसिल पृथ्वी के अन्दर विभिन्न स्तर पर खुदाई करके निकाले जाते हैं। इससे पता चलता है कि पृथ्वी की सतह के निकट पाए जाने वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए हैं।

19.) योजक कड़ी क्या है ? एक उदाहरण दें।

उत्तर:- जीवाश्म आर्किआप्टेरिकस के अध्ययन से पता चलता है कि उसमें कुछ लक्षण पक्षी के थे जबकि अन्य लक्षण सरीसृप के थे। इस आधार पर जीव वैज्ञानिकों ने उसे पक्षी और सरीसृप के मध्य की योजक कड़ी कहा। योजक कड़ी उस जीव को भी मानते हैं जिसमें किन्हीं दो समूहों के लक्षण पाये जाते हों।

Q21.) क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं ?

उत्तर:- क्योंकि सभी प्रकार के मानवों में अंतर्जनन संबंध स्थापित होते हैं एवं ऐसा कोई जीव वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर अलग-अलग रंग रूप वाले मानवों को अलग स्पीशीज से संबंधित होना सुनिश्चित कहा जा सके ।

Q22.) अप्राकृतिक चयन (वरण) क्या है ? स्पष्ट करें।

उत्तर:- जीवन के लिए संघर्ष में उन्हीं जीव-जातियों के वंशज बच जाते हैं, जो योग्यतम होती है। इसे योग्यतम की उत्तरजीविता कहते हैं। डार्विन के अनुसार, प्रकृति ऐसे ही जीवधारियों का जीवित रहने के लिए चयन कर लेती है। इसे प्राकृतिक चयन कहा जाता है।

Q23.) विकास का संश्लेषणात्मक सिद्धांत क्या है ?

उत्तर:- यह विकास का आधुनिक सिद्धांत है, जो डार्विन के ‘प्राकृतिक चयन’ के सिद्धांत एवं ह्यूगो डी ब्रीज के ‘उत्परिवर्तन सिद्धांत’ को मिलाकर प्रस्तुत किया गया है।

इस सिद्धांत के अनुसार जीवों का विकास तीन कारकों पर निर्भर करता है-

  1.  जीन विविधता,
  2.  प्राकृतिक चयन,
  3. जननात्मक एकाकीपन ।

Q24.) जीवाश्मों की आयु ज्ञात करने के लिए किन-किन विधियों का सहारा लिया जाता है ?

उत्तर:-

  1.  रेडियो सक्रिय घड़ी का प्रयोग,
  2.  रेडियो सक्रिय कार्बन विधि,
  3. पोटैशियम आर्गन विधि।

Q25.) वंशानुगत लक्षण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:- ऐसे लक्षण जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानान्तरित होते रहते हैं उन्हें आनुवंशिक गुण या लक्षण कहते हैं। इस परिघटना को आनुवंशिकता कहते हैं।

Q26.) मेंडल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे का चयन क्यों किया ?

उत्तर:- मेंडल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे का चयन किया क्योंकि मटर का पौधा आसानी से उपलब्ध हो जाता था, यह 1 वर्ष में कई बार लगाया जा सकता था। इनके पुष्प आकार में बड़े और अधिक परागण क्षमतावान हैं, इनमें परागण को आसानी ने किया जा सकता था। मटर के पौधे आसानी से बड़े हो जाते थे और इनका अध्ययन करना भी अत्यधिक सरल था।

Q27.) जीवों में पाई जाने वाली विभिन्नता का क्या लाभ है ?

उत्तर:- इससे किसी जाति का अस्तित्व बना रहता है और विभिन्न वायुमंडलीय परिस्थितियों में जीवों की उत्तरजीविता बनी रहती है।

Q28.) प्रभावी लक्षण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:- संकरण के पश्चात प्रथम पीढ़ी में जो लक्षण दिखाई देते हैं उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं।

Q29.) निम्नांकित चित्रों को पहचाने और इनपर आधारित प्रश्नों के उत्तर दें-

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  1. (A) और (B) किन जीवधारियों के अंग है ?
  2. ये किस प्रकार के अंग हैं ?
  3. इनमें कौन-सी समानताएँ या विषमताएँ है ?

उत्तर:-

  1. (A) चमगादड़ के पंख ,(B) पक्षी के पंख ।
  2. समरूप अंग।
  3. ये कार्य के आधार पर आपस में समान दिखाई पड़ते हैं। परन्तु उत्पत्ति के आधार पर एक दूसरे से भिन्न हैं।

Q30.) निम्नांकित चित्रों को पहचाने और इन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दें-

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  1. ये किस प्रकार के अंग हैं ?
  2. इनमें कौन-सी समानताएँ या विषमताएँ है ?
  3. ये अंग किस प्रकार विकास को सूचित करते हैं ?

उत्तर:-

(i) ये सभी समजात अंग हैं-

(क) ह्वेल का फ्लिपर,

(ख) चमगादड़ का पंख,

(ग) घोड़े की टाँग,

(घ) मनुष्य का हाथ।

(ii) ये उत्पत्ति के आधार पर समान हैं, लेकिन कार्य के आधार पर परस्पर भिन्न हैं।

(iii) ये अंग उत्पत्ति संबंधी समानताओं के आधार पर यह प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि विकास के दीर्घकालीन आयाम में से सभी जीव समान पूर्वजों से उत्पन्न हुए परन्तु विभिन्न परिस्थितियों तथा कारणों से ये एक दूसरे से भिन्न हो गए ।

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