Jac Board Class 10 Political science Chapter 6 राजनितिक दल Hindi Medium | Jac Board Solutions Class 10 राजनितिक विज्ञान | Class 10 Political science chapter 6 राजनितिक दल
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- अभ्यास
अध्याय 6:राजनितिक दल (Political Party)
Q1.) राजनीतिक दल के प्रमुख तीन हिस्से कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:-
(क) नेता,
(ख) सक्रिय सदस्य,
(ग) अनुयायी या समर्थक ।
Q2.) राजनीतिक दलों के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:- (क) सत्ता दल सरकार का निर्माण करते हैं और जनकल्याण के कार्यों को जनता तक पहुँचाते हैं।
(ख) विरोधी दल सरकार की नीतियों की आलोचना करके उसे सेवा कार्यों में लिप्त रहने के लिए मजबूर करते हैं।
Q3.) द्विदलीय प्रणाली का एक गुण और एक अवगुण लिखें।
उत्तर:- जिन देशों में द्विदलीय प्रणाली होती है वहाँ एक सत्तारुढ़ होता है तथा दूसरा विरोधी दल का होता है। अतः वह सत्तारुढ़ दल को तानाशाही की राह पर चलने से रोकता है। सबसे बड़ा अवगुण है कि कई बार सरकार की प्रगतिशील नीतियों के मार्ग में विपक्ष रोड़े अटकाता है।
Q4.) क्षेत्रीय दल क्या है ?
उत्तर:- क्षेत्रीय दल किसी क्षेत्र विशेष में अपनी राजनैतिक गतिविधियों को कार्यान्वित करते हैं और अपने क्षेत्र विशेष के हित के लिए कार्य करते हैं, क्षेत्रीय दल कहलाते हैं।
Q5.) भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना कब हुई थी और इसके संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 1885 ई० में हुई थी। इसके संस्थापक ए० ओ० ह्यूम थे।
Q6.) नेपाल में किस तरह की शासन व्यवस्था है ?
उत्तर:- नेपाल में वर्तमान समय में लोकतांत्रिक सरकार है।
Q7.) भारत में राजनीतिक दलों की संख्या कितनी है ?
उत्तर:- भारत के चुनाव आयोग के नवीनतम प्रकाशन दिनांक 23 सितम्बर 2021 के अनुसार, पंजीकृत दलों की कुल संख्या 2858 थी, जिसमें 8 राष्ट्रीय दल, 54 राज्य दल और 2796 गैर-मान्यता प्राप्त
Q8.) राजनीतिक दल के कार्य क्या हैं? किन्हीं चार का वर्णन करें।
उत्तर:- राजनीतिक दल के प्रमुख कार्य-
(क) चुनाव लड़ना- राजनीतिक दल के उम्मीदवारों का चयन दल के नेता द्वारा अथवा सदस्यों तथा समर्थकों द्वारा होता है। प्रत्येक राजनीतिक दल चुनाव जीतना चहता है ताकि सत्ता प्राप्त कर वह अपनी नीतियों को क्रियान्वित कर सके।
(ख) सरकारी नीति को दिशा निर्देश- विभिन्न राजनीतिक दल अपनी-अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को मतदाता के सामने रखते हैं। जनता इनमें से अपनी पसंद की नीतियों अथवा कार्यक्रमों को चुनती है। इससे सरकार को जनता की पसंद-नापसंद के बारे में पता चलता है।
(ग) कानून निर्माण- राजनीतिक दल कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विधायिका में राजनीतिक दल के सदस्य होते हैं। कोई भी कानून विधायिका में ही तैयार होता है जिसमें राजनीतिक दल के सदस्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(घ) सरकार का संचालन तथा नीतियों एवं कार्यक्रमों का संचालन- चुनाव में जिस राजनीतिक दल को सफलता मिलती है वह सरकार का निर्माण करता है तथा अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित करता है।
Q9.) राजनीतिक दलों के सामने क्या चार चुनौतियाँ हैं ?
उत्तर:-
(क) आंतरिक लोकतंत्र का अभाव- राजनीतिक दलों में प्रायः आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता है। इसका अभिप्राय यह है कि दल की सम्पूर्ण शक्ति उसके शीर्षस्थ नेताओं के हाथ में सिमट जाती है। शीर्षस्थ नेताओं द्वारा सामान्य कार्यकर्ता को अंधेरे में रखा जाता है तथा पार्टी के नाम पर सारे फैसले वे स्वयं लेते हैं। उनसे असहमति रखने वाले व्यक्ति के पास पार्टी छोड़ने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं होता है। सिद्धांतों के स्थान पर नेता ही महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
(ख) वंशवाद की चुनौती- अधिकांश दलों में नेताओं द्वारा अपने परिवार के लोगों को आगे बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप एक सामान्य कार्यकर्ता के नेता बनने के आसार खत्म हो जाते हैं। दूसरे इससे अनुभवहीन तथा बिना जनाधार वाले लोग शीर्ष पद पर पहुँच जाते हैं।
(ग) पैसा और बाहुबल का बढ़ता प्रभाव- राजनीतिक पार्टियों का मुख्य उद्देश्य चुनाव जीतना होता है, अतः इसके लिए वे पैसे और बाहुबल के प्रयोग से नहीं हिचकते हैं। इससे पार्टी पर अमीर लोगों तथा अपराधी तत्वों का प्रभाव बढ़ने लगता है तथा पार्टी के सिद्धांत पृष्ठभूमि में चले जाते हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह एक बहुत बड़ी चुनौती है।
(घ) जाति एवं सम्प्रदाय की बाध्यता- कई दलों किसी खास जाति या सम्प्रदाय का प्रभुत्व होता है। अपने सिद्धांतों को व्यापक जनाधार तक ले जाने के लिए राजनीतिक दल इन तत्वों से छुटकारा पाने में चाह कर भी असमर्थ होते हैं।
Q10.) राजनीतिक दलों को कैसे सुधारा जा सकता है ?
उत्तर:- लोकतंत्र के कामकाज के लिए राजनीतिक पार्टियाँ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। चूँकि दल ही लोकतंत्र का सबसे ज्यादा प्रकट रूप है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि लोकतंत्र के कामकाज की गड़बड़ियों के लिए लोग राजनीतिक दल को ही दोषी ठहराते हैं। अतः चुनौतियों का सामना करने के लिए दलों को सुधारने के लिए कुछ सुझाव निम्नांकित हैं-
(क) विधायकों और सांसदों को दल बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। नए कानून के अनुसार अपना दल बदलने वाले सांसद या विधायक को अपनी सीट भी गँवानी होगी। उन्हें इसे मानना होता है।
(ख) उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए यह आदेश जारी किया है कि चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी सम्पत्ति का और अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथपत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया गया है।
(ग) चुनाव आयोग ने एक आदेश के जरिए सभी दलों के लिए संगठित चुनाव करना और आयकर का रिटर्न भरना जरूरी कर दिया है।
(घ) राजनीतिक दल एक निश्चित अनुपात में महिलाओं को टिकट दें।’ दल के प्रमुख पदों पर भी औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए।
इनके अलावे राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाकर जैसे आन्दोलन और मीडिया आदि के द्वारा भी संभव हो सकता है। इस प्रकार लोकतंत्र मजबूत हो सकता है।
Q11.)आधुनिक लोकतंत्र राजनीतिक दलों के बिना क्यों नहीं चल सकता ? वर्णन करें।
उत्तर:- अगर दल न हो तो सारे उम्मीदवार स्वतंत्र या निर्दलीय होंगे। तब, इसमें से कोई भी बड़े नीतिगत बदलाव के बारे में लोगों से चुनावी वायदे करने की स्थिति में नहीं होगा। सरकार बन जाएगी पर उसकी उपयोगिता संदिग्ध होगी। निर्वाचित प्रतिनिधि सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्रों में किए गए कामों के लिए जवाबदेह होंगे। लेकिन, देश कैसे चले इसके लिए कोई उत्तरदायी नहीं होगा।
हम गैर दलीय आधार पर होने वाले पंचायत चुनावों का उदाहरण सामने रखकर भी इस बात की परख कर सकते हैं। हाँलाकि इन चुनावों में दल औपचारिक रूप से अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करते लेकिन हम पाते हैं कि चुनाव के अवसर पर पूरा गाँव कई खेमों में बँट जाता है और हर खेमा सभी पदों के लिए अपने उम्मीदवारों का ‘पैनल’ उतारता है। राजनीतिक दल भी ठीक यही काम करते हैं। यही कारण है कि हमें दुनिया के लगभग सभी देशों में राजनीतिक दल नजर आते हैं चाहे वह देश बड़ा हो या छोटा, नया हो या पुराना, विकसित हो या विकासशील ।
राजनीतिक दलों का उदय प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था के उभार के साथ जुड़ा है। जब समाज बड़े और जटिल हो जाते हैं तब उन्हें विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग विचारों को समेटने और सरकार को नजर में लाने के लिए किसी माध्यम या एजेंसी की जरूरत होती है। विभिन्न जगहों से आए प्रतिनिधियों को साथ करने की जरूरत होती है ताकि एक जिम्मेवार सरकार का गठन हो सके। उन्हें सरकार का समर्थन करने या उस पर अंकुश रखने, नीतियाँ बनवाने और नीतियों का समर्थन अथवा विरोध करने के लिए उपकरणों की जरूरत होती है। प्रत्येक प्रतिनिधि-सरकार की ऐसी जो भी जरूरते होती हैं, राजनीतिक दल उनको पूरा करते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दल लोकतंत्र की एक अनिवार्य शर्त है।
Q12.) लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जरूरत क्यों है ?
उत्तर:- लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जरूरत निम्न कारणों से है-
(क) विश्व में बड़े-बड़े देश हैं जिनमें लोकतांत्रिक व्यवस्था है क्योंकि इन बड़े देशों में एक व्यक्ति द्वारा शासन संभव नहीं है, इसलिए कई लोगों के समूह मिलकर शासन करते हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को एक समूह के रूप में संगठित करने के लिए राजनीतिक दल की जरूरत होती है।
(ख) लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के मतों द्वारा शासन वर्ग का चुनाव होता है। इसके लिए एक देश या प्रांत को कई चुनाव क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। राजनीतिक दल ही चुनावों में जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने उम्मीदवार खड़ा करते हैं और बहुमत मिलने पर सरकार का गठन करते हैं। एक व्यक्ति द्वारा एक क्षेत्र में चुनाव जीतकर सरकार का गठन करना संभव नहीं हैं ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल की जरूरत होती है।
(ग) राजनीतिक दल में एक विचारधारा के लोग सम्मिलित होते हैं जो चुनाव में बहुमत मिलने पर सरकार का गठन करते हैं और पूरे कार्यकाल तक शासन करते हैं। लेकिन अगर विभिन्न विचारधाराओं के लोग जो विभिन्न चुनाव क्षेत्रों से जीतकर सरकार का गठन करते हैं। यदि उनमें कोई मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो उनके द्वारा गठित सरकार क्षणिक ही होगी। ऐसी स्थिति में प्रभावी राजनीतिक दलों की जरूरत होती है। जो सत्ता में आने पर ठीक से सरकार संचालित कर सके।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र को प्रभावी और दृढ़ बनाने में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Q13.) लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका पर प्रकाश डालें। अथवा, हमारे देश में विपक्ष के चार मुख्य कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:- लोकतंत्रीय शासन प्रणाली चुनावों पर आधारित होती है। चुनावों में जिस दल को बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह सरकार की स्थापना करता है और अन्य दल विरोधी दल कहलाते हैं। लोकतंत्र में विरोधी दलों का भी उतना ही महत्व होता है जितना कि सत्तारूढ़ दल का। लोकतंत्र में विरोधी दल निम्नांकित भूमिका निभाते हैं-
(क) सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाना- लोकतंत्र में सरकार का निर्माण बहुसंख्यक दल के द्वारा किया जाता है। बहुमत के समर्थन के कारण सरकार कई बार मनमाने कानून व नीतियाँ लागू करने का प्रयत्न करती है, और जनता पर अत्याचार करती है। विरोधी दल सरकार का विरोध करके उसकी निरंकुशता पर रोक लगाता है और उसे मनमानी करने से रोकता है।
(ख) जनमत की अभिव्यक्ति करना- विरोध दल सरकार व साधारण जनता के बीच कड़ी का काम करते हैं। विभिन्न विषयों पर जनता की भावनाओं, इच्छाओं व प्रतिक्रियाओं को सत्तारूढ़ दल संसद तक पहुँचाते हैं। विरोधी दल विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रश्नों पर जनमत जागृत करके अपने मत को प्रस्तुत करता है, जिससे जनमत के निर्माण में भी सहायता मिलती है।
(ग) वैकल्पिक सरकार प्रस्तुत करना- विरोधी दल वैकल्पिक सरकार प्रस्तुत करते हैं। यदि किसी समय सरकार अचानक त्याग-पत्र दे दे या उसे हटा दिया जाए, तो विरोधी दल तुरंत सरकार का गठन करके शासन की बागडोर सँभाल लेते हैं।
(घ) राजनैतिक चेतना उत्पन्न करना- लोकतंत्रीय शासन प्रणाली की सफलता के लिए जनता में राजनैतिक चेतना का जागृत होना आवश्यक है। इसके बिना चुनावों द्वारा सरकार में परिवर्तन लाना कठिन होता है। विरोधी दल सरकार की त्रुटियों को जनता तक पहुँचाते हैं और देश तथा सरकार के बारे में जनता को जानकारी देते हैं। इस प्रकार वे जनता में राजनैतिक जागृति उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विरोधी दल लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Q14.) राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ है?
उत्तर:- (क) पहली चुनौती है पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का न होना। सारी दुनिया में यह प्रवृत्ति बन गई है कि सारी ताकत एक या कुछेक नेताओं के हाथ में सिमट जाती है। पार्टियों के पास न सदस्यों की खुली सूची होती है, न नियमित रूप से सांगठनिक बैठकें होती हैं। उसके पास न तो नेताओं से जुड़कर फ़ैसलों को प्रभावित करने की ताकत होती है न ही कोई और माध्यम।
(ख ) दूसरी चुनौती पहली चुनौती से ही जुड़ी है-यह है वंशवाद की चुनौती। चूंकि अधिकांश दल अपना कामकाज पारदर्शी तरीके से नहीं करते इसलिए सामान्य कार्यकर्ता के नेता बनने और ऊपर आने की गुंजाइश काफ़ी कम होती है। जो लोग नेता होते हैं वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं।
(ग) तीसरी चुनौती दलों में, (खासकर चुनाव के समय) पैसा और अपराधी तत्वों की बढ़ती घुसपैठ की है। चूँकि पार्टियों की सारी चिंता चुनाव जीतने की होती है अतः इसके लिए कोई भी जायज नाजायज तरीका अपनाने से वे परहेज नहीं करतीं। वे ऐसे ही उम्मीदवार उतार
(घ ) चौथी चुनौती पार्टियों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति की है। हाल के वर्षों में दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता गया है और यह प्रवृत्ति दुनिया भर में दिखती है। जैसे, ब्रिटेन की लेबर पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी के बीच अब बड़ा कम अंतर रह गया है। दोनों दल बुनियादी मसलों पर सहमत हैं और उनके बीच अंतर बस ब्यौरों का रह गया है कि नीतियाँ कैसे बनाई जाएँ और उन्हें कैसे लागू किया जाए।