jac board class 9 History chapter 1 Notes in Hindi | फ्रांसीसी क्रांति

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class 9 History chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति 

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Jac Board Class 9 History Chapter 1: फ्रांसीसी क्रांति

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Jac Board Class 9 History Chapter 1 Notes
Jac Board Class 9 History Chapter 1 Notes in Hindi

अध्याय 1 : फ्रांसीसी क्रांति ( French Revolution )

घटनाओं का परिचय

  • इस खंड में फ़्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति, और नात्सीवाद के उदय का इतिहास शामिल है।
  • इन तीनों घटनाओं का आधुनिक विश्व के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

फ़्रांसीसी क्रांति

  • फ्रांसीसी क्रांति ने राजतंत्र को समाप्त कर दिया।
  • मानव अधिकार घोषणापत्र ने समानता और स्वतंत्रता को राजनीति की नई भाषा बनाया।
  • यह क्रांति विशेषाधिकार आधारित व्यवस्था को हटाकर नई शासन व्यवस्था लेकर आई।
  • समानता और स्वतंत्रता का विचार पूरी दुनिया में उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों की प्रेरणा बना।
  • भारत, चीन, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के आंदोलनों पर इसका प्रभाव पड़ा।

रूसी क्रांति

  • रूस के शासक जार निकोलस II को सत्ता छोड़नी पड़ी।
  • इस क्रांति ने आर्थिक समानता और मजदूर-किसानों के अधिकारों को प्राथमिकता दी।
  • नई सोवियत सरकार ने औद्योगीकरण और मशीनीकरण को बढ़ावा दिया, लेकिन नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन किया।
  • समाजवाद का विचार कई उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों में शामिल हुआ।
  • बीसवीं सदी में समाजवाद ने समकालीन विश्व को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई।

नात्सीवाद का उदय

  • हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी में नात्सीवाद की राजनीति उभरी।
  • महिलाओं और बच्चों की दशा, स्कूलों और यातना गृहों की हकीकत को उजागर किया गया।
  • यहूदियों को जीने के अधिकार से वंचित किया गया और उनका सफ़ाया करने के लिए यहूदी विरोधी भावनाएँ भड़काईं।
  • नात्सीवाद लोकतंत्र और समाजवाद के खिलाफ़ था।
  • भारत में हिटलर के विचारों से कुछ लोग प्रभावित हुए, लेकिन अधिकांश ने इसे नकारा।

◊ सामान्य निष्कर्ष

  • ये तीनों घटनाएँ आधुनिक दुनिया की राजनीति और समाज को समझने का महत्वपूर्ण आधार हैं।
  • समानता, स्वतंत्रता और मानवाधिकार के विचार इन्हीं क्रांतियों से उभरे|

◊ फ्रांसीसी क्रांति (14 जुलाई 1789)

1.बास्तील किले पर हमला

  • चौदह जुलाई 1789 को पेरिस में आतंक और अफवाह का माहौल था।
  • सम्राट ने सेना को शहर में घुसने और नागरिकों पर गोली चलाने का आदेश दिया।
  • लगभग 7000 मर्द और औरतों ने टाउन हॉल के सामने इकट्ठा होकर जन-सेना बनाने का निर्णय लिया।
  • हथियारों की खोज में सरकारी भवनों पर हमला किया गया।
  • बास्तील किले पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र लड़ाई हुई।

2. बास्तील किले का महत्व बास्तील

  • किला सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक था।
  • किले का कमांडर मारा गया और कैदियों को आज़ाद किया गया (हालाँकि केवल 7 कैदी थे)।
  • किले को ढहा दिया गया और उसके अवशेष स्मृति चिह्न के रूप में बेचे गए।

3. संघर्ष का विस्तार

  • पेरिस और देहाती क्षेत्रों में कई दिनों तक संघर्ष जारी रहा।
  • जनता पावरोटी की महँगी कीमतों का विरोध कर रही थी।

4. इतिहासकारों का दृष्टिकोण

  • इतिहासकार इसे एक लंबे घटनाक्रम की शुरुआत मानते हैं, जिसकी परिणति सम्राट को फाँसी दिए जाने में हुई।
  • उस समय अधिकांश लोगों को इस क्रांति के ऐसे नतीजे की उम्मीद नहीं थी।

अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ़्रांसीसी समाज

1. लुई XVI का शासनकाल

  • सन् 1774 में लुई XVI बूर्बो राजवंश के शासक बने; उनकी उम्र मात्र 20 वर्ष थी।
  • उनका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ।
  • लुई ने राजकोष खाली पाया, जो लंबे युद्धों और राजदरबार की शानो-शौकत से बर्बाद हो चुका था।
  • फ्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को ब्रिटेन से आजादी दिलाने में मदद की, जिससे 10 अरब लिब्रे का नया कर्ज जुड़ गया।

2. फ़्रांसीसी समाज की वर्गीय संरचना

  • फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में विभाजित था:
  • प्रथम एस्टेट: पादरी वर्ग (चर्च से जुड़े विशेषाधिकारी)।
  • द्वितीय एस्टेट: कुलीन वर्ग (जमींदार और सामंती अधिकारी)।
  • तृतीय एस्टेट: जनसाधारण (किसान, मजदूर, व्यापारी)।
  • प्रथम और द्वितीय एस्टेट को करों से छूट थी और वे कई सामंती अधिकारों का लाभ उठाते थे।
  • तृतीय एस्टेट को सभी प्रकार के कर चुकाने पड़ते थे, जैसे:
    टाइल: प्रत्यक्ष कर।
  • टाइद: चर्च द्वारा वसूला जाने वाला कृषि कर।
  • अप्रत्यक्ष कर: नमक और तंबाकू जैसी रोजमर्रा की चीजों पर।

3. किसानों की स्थिति

  • 90% आबादी किसान थी, लेकिन जमीन के मालिक बहुत कम किसान थे।
  • 60% जमीन कुलीन वर्ग, चर्च और अमीरों के पास थी।
  • किसान सामंती कर चुकाने और सामंती सेवाएँ देने के लिए बाध्य थे, जैसे:
    (a) खेत और सड़कों पर काम।
    (b) सैन्य सेवाएँ।

4. वित्तीय संकट और करों का बोझ

  • कर्जदाता सरकार से 10% ब्याज माँग रहे थे।
  • सरकार का अधिकतर बजट कर्ज चुकाने में चला जाता था।
  • सेना, राजदरबार और सरकारी कार्यालयों के खर्चों को पूरा करने के लिए करों में वृद्धि की गई, पर यह पर्याप्त नहीं था।
  • पूरा वित्तीय भार तृतीय एस्टेट के लोगों पर था।

5. शब्दावली

  • लिब्रे: फ्रांस की मुद्रा (1794 में समाप्त)।
  • एस्टेट: फ्रांसीसी समाज में शक्ति और हैसियत की श्रेणी।
  • पादरी वर्ग: चर्च के कार्यकर्ता।
  • टाइद: चर्च द्वारा वसूला जाने वाला कर (कृषि उपज का 10वां हिस्सा)।
  • टाइल: राज्य को अदा किया जाने वाला प्रत्यक्ष कर।

उभरते मध्य वर्ग ने विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना की – मुख्य बिंदु:

1.किसानों और कामगारों के विद्रोह:

  • पहले भी किसानों और कामगारों ने कर बढ़ने और अकाल के कारण विद्रोह किया।
  • लेकिन उनके पास व्यवस्था में बुनियादी बदलाव लाने के लिए साधन और कार्यक्रम नहीं थे।

2. मध्य वर्ग का उदय:

  • अठारहवीं सदी में मध्य वर्ग नामक नया सामाजिक समूह उभरा।
  • यह वर्ग समुद्रपारीय व्यापार और ऊनी व रेशमी वस्त्रों के उत्पादन से संपत्ति अर्जित करता था।
  • इसमें सौदागर, निर्माता, प्रशासनिक सेवक और वकील जैसे पढ़े-लिखे लोग शामिल थे।

3.नए विचारों का प्रभाव:

  • मध्य वर्ग का मानना था कि जन्म से विशेषाधिकार नहीं मिलने चाहिए।
  • व्यक्ति की सामाजिक हैसियत उसकी योग्यता पर आधारित होनी चाहिए।
  • यह विचार जॉन लॉक, ज्याँ जाक रूसो और मॉन्तेस्क्यू जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत किए।

4. दार्शनिकों का योगदान:

  • जॉन लॉक: ‘टू ट्रीटाइजेज ऑफ़ गवर्नमेंट’ में राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों का खंडन किया।
  • रूसो: सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव दिया।
  • मॉन्तेस्क्यू: ‘द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़’ में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात की।

5. अमेरिकी क्रांति का प्रभाव:

  • अमेरिकी संविधान और व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी ने फ्रांसीसी चिंतकों को प्रेरित किया।

6. विचारों का प्रसार:

  • दार्शनिकों के विचार कॉफी हाउसों, सैलॉन की गोष्ठियों और पुस्तकों के माध्यम से फैले।
  • इन्हें जोर से पढ़ा जाता ताकि अनपढ़ लोग भी समझ सकें।

7. राज्य खर्च और कर विवाद:

  • लुई XVI द्वारा खर्च पूरा करने के लिए फिर से कर लगाने की खबर ने जनता के गुस्से को भड़काया।
  • इस गुस्से ने विशेषाधिकारों वाली व्यवस्था के खिलाफ़ आंदोलन को और तेज़ कर दिया।

क्रांति की शुरुआत – मुख्य बिंदु

1.कर विवाद और एस्टेट्स जेनराल की बैठक (1789):

  • लुई XVI ने नए करों के अनुमोदन के लिए 5 मई 1789 को एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई।
  • पहली बार 1614 के बाद यह बैठक हुई।
  • प्रत्येक एस्टेट को एक मत देने का नियम लागू था, जिससे तीसरे एस्टेट को असंतोष हुआ।

2. तीसरे एस्टेट का विरोध:

  • तीसरे एस्टेट ने माँग की कि प्रत्येक सदस्य को एक मत का अधिकार मिले।
  • जब यह माँग अस्वीकार हुई, तो तीसरे एस्टेट ने सभा से बाहर जाकर खुद को नैशनल असेंबली घोषित किया।
  • 20 जून को इन प्रतिनिधियों ने इन्डोर टेनिस कोर्ट में शपथ ली कि संविधान तैयार होने तक वे पीछे नहीं हटेंगे।

3. नेता और विचारधारा:

  • मिराब्यो और आबे सिए ने नैशनल असेंबली का नेतृत्व किया।
  • मिराब्यो ने सामंती विशेषाधिकारों को समाप्त करने की वकालत की।
    आबे सिए ने “तीसरा एस्टेट क्या है?” नामक प्रचार पुस्तिका लिखी।

4. जनता का गुस्सा:

  • कड़ाके की ठंड के कारण फ़सल बर्बाद और पावरोटी की कीमतें बढ़ीं।
  • 14 जुलाई को क्रुद्ध जनता ने बास्तील जेल पर धावा बोला।
    ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों ने जागीरदारों के किलों पर हमला किया और लगान दस्तावेज जला दिए।

5. नैशनल असेंबली की मान्यता:

  • लुई XVI ने नैशनल असेंबली को मान्यता दी और संविधान को स्वीकार किया।
  • 4 अगस्त 1789 को सामंती व्यवस्था का उन्मूलन किया गया।
  • धार्मिक कर समाप्त कर चर्च की भूमि जब्त कर ली गई।

6. महत्त्वपूर्ण तिथियाँ:

  • 1774: लुई XVI फ्रांस का राजा बना।
  • 1789: बास्तील पर हमला, नैशनल असेंबली का गठन।
  • 1791: संविधान लागू, सम्राट की शक्तियों पर अंकुश।
  • 1792-93: फ्रांस गणराज्य घोषित, राजा का वध।
  • 1804: नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बना।
  • 1815: नेपोलियन वॉटरलू में पराजित हुआ।

फ़्रांस: संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना

सन् 1791 में नैशनल असेंबली ने संविधान का प्रारूप तैयार कर लिया, जिसका मुख्य उद्देश्य सम्राट की शक्तियों को सीमित करना और उन्हें विभाजित करना था। इस संविधान ने फ़्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव रखी।

1. संवैधानिक राजतंत्र की विशेषताएँ
शक्ति का विभाजन:

  • सत्ता को तीन संस्थाओं—विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका—के बीच विभाजित किया गया।
  • सम्राट की शक्ति पर अंकुश लगाया गया और उसे केवल नाममात्र का प्रमुख बनाया गया।

2. नैशनल असेंबली का गठन:

  • कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौंपा गया।
  • यह असेंबली अप्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया से चुनी जाती थी।

3. मतदान का अधिकार:

  • केवल 25 वर्ष से अधिक उम्र के ऐसे पुरुषों को सक्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया जो तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे।
  • शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक कहा गया।
  • असेंबली के सदस्य बनने के लिए उच्चतम करदाताओं में होना आवश्यक था।

4. ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’:

  • संविधान का प्रारंभ इस घोषणापत्र से हुआ।
  • यह घोषणापत्र निम्नलिखित अधिकारों को नैसर्गिक एवं अहरणीय घोषित करता है:
    (a)जीवन का अधिकार
    (b)अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
    (c)कानूनी बराबरी का अधिकार
  • राज्य को इन अधिकारों की रक्षा करने का कर्तव्य सौंपा गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:- 

  • यह व्यवस्था केवल संपन्न वर्ग तक सीमित थी, क्योंकि गरीब नागरिक और महिलाएँ इसमें भाग नहीं ले सकते थे।
  • इस संविधान ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों का आधार प्रदान किया, लेकिन यह समानता और सार्वभौमिक अधिकारों की दृष्टि से अधूरी थी।

♦ फ़्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना :-

फ़्रांस में राजतंत्र के उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना का सफर अत्यंत संघर्षपूर्ण था। यद्यपि लुई XVI ने संवैधानिक राजतंत्र को स्वीकार कर लिया था, लेकिन वह गुप्त रूप से प्रशा के राजा से संपर्क कर रहा था। फ़्रांस की क्रांति ने न केवल देश के भीतर बल्कि पूरे यूरोप में हंगामा मचा दिया। पड़ोसी देशों के शासक चिंतित थे और उन्होंने फ़्रांस की स्थिति पर काबू पाने के लिए सेना भेजने की योजना बनाई थी। लेकिन इससे पहले कि वे यह योजना अमल में लाते, नैशनल असेंबली ने अप्रैल 1792 में प्रशा और ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।

♦ क्रांतिकारी संघर्ष:-

‘युद्ध में भाग लेने के लिए प्रांतों से हजारों स्वयंसेवक सेना में शामिल होने के लिए पेरिस पहुंचे। इस युद्ध को फ़्रांस के लोग यूरोपीय राजाओं और कुलीनों के खिलाफ जनता की क्रांति के रूप में देख रहे थे। क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान “मार्सिले” गीत, जिसे कवि रॉजेट दि लाइल ने लिखा था, गाया गया। यह गीत मार्सिलेस के स्वयंसेवकों द्वारा पेरिस की ओर बढ़ते हुए गाया गया था और यही गीत बाद में फ़्रांस का राष्ट्रीय गान बन गया।

♦ महिलाओं की भूमिका:-

क्रांतिकारी युद्धों के कारण जनता को भारी क्षति और आर्थिक कठिनाइयाँ उठानी पड़ीं। पुरुषों के मोर्चे पर जाने के बाद घर-परिवार और रोज़ी-रोटी की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ गई। इस दौरान महिलाओं ने भी राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया और खुद के क्लब बनाकर क्रांति के उद्देश्य को आगे बढ़ाने का प्रयास किया।

♦ जैकोबिन क्लब:-

फ़्रांस में क्रांतिकारी आंदोलन में जैकोबिन क्लब की प्रमुख भूमिका थी। जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्य रूप से समाज के कम समृद्ध वर्ग से आते थे, जैसे छोटे दुकानदार, कारीगर और मजदूर। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था। जैकोबिनों ने एक विशेष प्रकार की पोशाक पहनी, जिसे सौं कुलॉत कहा जाता था। यह पोशाक समाज के कुलीन वर्ग से अलग पहचान थी। जैकोबिनों ने 10 अगस्त 1792 को एक हिंसक विद्रोह की योजना बनाई और पेरिस के ट्यूलेरिए महल पर धावा बोल दिया।

♦ राजतंत्र का उन्मूलन:-

10 अगस्त 1792 को जैकोबिनों ने पेरिसवासियों की मदद से शाही महल पर हमला किया और राजा लुई XVI को बंधक बना लिया। इसके बाद असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डालने का प्रस्ताव पारित किया और नए चुनाव कराए गए। इन चुनावों में सभी 21 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों को वोट देने का अधिकार दिया गया, चाहे उनके पास संपत्ति हो या न हो। 21 सितंबर 1792 को नवनिर्वाचित असेंबली ने फ़्रांस को एक गणतंत्र घोषित कर दिया, जिससे राजतंत्र का अंत हुआ। यह गणतंत्र सरकार का वह रूप था जहाँ जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती थी।

♦ लुई XVI की फांसी:- 

लुई XVI को न्यायालय ने देशद्रोह के आरोप में दोषी पाया और उसे मौत की सजा सुनाई। 21 जनवरी 1793 को पेरिस के प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई। बाद में रानी मेरी एंटोएनेट का भी वही हश्र हुआ। इस प्रकार, फ़्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन हुआ और गणतंत्र की स्थापना हुई, जो भविष्य में लोकतंत्र की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

◊ आतंक राज (1793-1794)

यह काल फ़्रांस क्रांति का सबसे डरावना समय था, जब रोबेस्प्येर ने सख्त और दमनात्मक नीतियाँ लागू कीं। उसने गणतंत्र के शत्रुओं को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ क्रांतिकारी न्यायालय में मुकदमा चलवाया। अगर कोई दोषी पाया जाता, तो उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया जाता, जो सिर कलम करने की एक मशीन थी।

रोबेस्प्येर ने खाद्य कीमतों को नियंत्रित किया, किसानों को अपना अनाज शहरों में बेचने के लिए मजबूर किया, और ‘समता रोटी’ अनिवार्य की। उसने समाज में समानता बढ़ाने के लिए पारंपरिक संबोधन बदलकर “नागरिक” और “नागरिका” कर दिया।

लेकिन रोबेस्प्येर की सख्ती ने उसके समर्थकों को भी नाराज कर दिया, और जुलाई 1794 में उसे गिरफ्तार कर गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया, जिससे आतंक का युग समाप्त हो गया।

◊ डिरेक्टी शासित फ़्रांस

जैकोबिन सरकार के पतन के बाद फ़्रांस में सत्ता मध्य वर्ग के संपन्न तबके के हाथों में आ गई। नए संविधान के तहत संपत्तिहीन वर्ग को मतदान का अधिकार नहीं मिला। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था, जिन्होंने एक पाँच सदस्यीय कार्यपालिका (डिरेक्ट्री) को नियुक्त किया। इसका उद्देश्य एक व्यक्ति-केंद्रित शासन से बचना था, जैसे जैकोबिनों के समय था।

लेकिन, डिरेक्ट्री में अक्सर राजनीतिक अस्थिरता रहती थी। परिषदें समय-समय पर डिरेक्ट्री को बर्खास्त करने की कोशिश करतीं। इन विवादों और अस्थिरताओं ने सैनिक नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग खोला। इन बदलावों के बावजूद, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे आदर्श फ़्रांस और यूरोप के राजनीतिक आंदोलनों को प्रेरित करते रहे।

◊ महिलाओं के लिए क्रांति

महिलाएँ फ़्रांस की क्रांति में सक्रिय रूप से शामिल थीं और उनके जीवन में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने की उम्मीद करती थीं। वे कामकाजी थीं और उनकी मजदूरी पुरुषों से कम थी। महिलाओं ने अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए क्लब बनाए और मतदान, असेंबली में चुनाव और राजनीतिक पदों की माँग की।

क्रांतिकारी सरकार ने कुछ सुधार किए, जैसे लड़कियों के लिए शिक्षा, विवाह को स्वैच्छिक बनाना और तलाक को कानूनी दर्जा देना। हालांकि, आतंक राज में महिला क्लबों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और कई महिलाओं को गिरफ्तार कर फाँसी दी गई। महिलाओं का मताधिकार और समान वेतन के लिए संघर्ष जारी रहा और 1946 में उन्हें मताधिकार मिला।

◊ दास-प्रथा का उन्मूलन

फ़्रांसीसी उपनिवेशों में दास-प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के सामाजिक सुधारों में एक महत्वपूर्ण कदम था। कैरिबियाई उपनिवेशों जैसे मार्टिनिक, गॉडेलोप और सैन डोमिंगो में तम्बाकू, चीनी, कॉफ़ी जैसी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था, जिसके लिए दासों की आवश्यकता थी। दास-व्यापार के तहत अफ़्रीका से दासों को कैरिबियाई उपनिवेशों में लाया जाता था, जहाँ उन्हें बागान मालिकों को बेचा जाता था।

फ़्रांसीसी नैशनल असेंबली में इस पर बहस हुई, लेकिन दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के कारण कोई क़ानून नहीं बनाया गया। अंततः 1794 में कन्वेंशन ने दासों की मुक्ति का क़ानून पारित किया, लेकिन यह केवल दस साल तक ही लागू रहा। 1804 में नेपोलियन ने दास-प्रथा को फिर से शुरू कर दिया। आखिरकार, 1848 में फ़्रांसीसी उपनिवेशों से दास-प्रथा का पूर्ण उन्मूलन किया गया।

◊ क्रांति और रोज़ाना की जिंदगी

क्रांति ने फ्रांस के लोगों की रोज़ाना की जिंदगी में कई बदलाव किए। 1789 में बास्तील के विध्वंस के बाद, क्रांतिकारी सरकार ने स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों को लोगों की ज़िंदगी में लागू करने के लिए कई क़ानून बनाए। एक महत्वपूर्ण बदलाव था सेंसरशिप की समाप्ति। पहले, राजतंत्र में सभी किताबें, अखबार, नाटक आदि राजा के अधिकारियों द्वारा जांचे जाते थे, लेकिन अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक प्राकृतिक अधिकार मान लिया गया।

इससे प्रेस की स्वतंत्रता बढ़ी और शहरों में अखबारों, पुस्तकों और पर्चों की बाढ़ आ गई, जो धीरे-धीरे गाँवों तक पहुंचने लगे। इनमें फ़्रांस में हो रही घटनाओं और परिवर्तनों पर टिप्पणियाँ होती थीं। लोग अब विरोधी विचारों को भी जान सकते थे और अपनी राय व्यक्त कर सकते थे। नाटक, संगीत और उत्सवों में भी बड़ी संख्या में लोग शामिल होने लगे, और राजनीतिज्ञों और दार्शनिकों के लेखन को समझने का यह एक लोकप्रिय तरीका बन गया।

Q1. फ्रांस में क्राति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?

उत्तर:- फ्रांस में क्रांति की शुरुआत की परिस्थितियाँ :- 

a) सामाजिक असमानता:-
समाज तीन वर्गों में बँटा था। पहले और दूसरे एस्टेट को विशेषाधिकार मिले थे, जबकि तीसरे एस्टेट पर भारी कर लगाए गए।

b) आर्थिक संकट:-
शाही खर्च और युद्धों से खजाना खाली हो गया। जनता पर कर का बोझ बढ़ा, लेकिन समस्याएँ बनी रहीं।

c) भुखमरी और महँगाई:-
फ़सलें खराब होने से अनाज की कमी हो गई और ब्रेड की कीमतें बढ़ गईं, जिससे जनता त्रस्त हो गई।

d) राजनीतिक कारण:-
राजा लुई सोलहवें कमजोर शासक थे। जनता को शासन में कोई भागीदारी नहीं थी।

e) वैचारिक प्रभाव:-
रूसो, वोल्तेयर जैसे दार्शनिकों ने स्वतंत्रता और समानता के विचारों को प्रोत्साहित किया।

f) एस्टेट्स जनरल की बैठक:-
1789 में तीसरे एस्टेट की उपेक्षा हुई, जिससे विद्रोह का मार्ग प्रशस्त हुआ।

निष्कर्ष:
इन परिस्थितियों ने जनता में असंतोष पैदा किया, जो क्रांति का कारण बनी।

Q2.) फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फ़ायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?

उत्तर:- 

a) मध्य वर्ग:- संपन्न व्यापारी, वकील और डॉक्टर को समानता और स्वतंत्रता के अधिकार मिले।

b) किसान और श्रमिक: किसानों से ज़मींदारों के विशेषाधिकार समाप्त हुए।
c) महिलाएँ:- शिक्षा और तलाक का अधिकार मिला, लेकिन राजनीतिक अधिकार नहीं।

सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर समूह

d) कुलीन वर्ग और राजशाही:- राजा, पादरी और कुलीन विशेषाधिकार से वंचित हुए।

निराश समूह
e) गरीब वर्ग और महिलाएँ:- गरीब तबके को आर्थिक सुधार नहीं मिला और महिलाओं की राजनीतिक मांगें अधूरी रहीं।

Q3.) उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्राति कौन-सी विरासत छोड़ गई?

उत्तर:- फ्रांसीसी क्रांति ने उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे आदर्शों की अमूल्य विरासत छोड़ी। इसने यह सिद्ध किया कि शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना संभव है। राजशाही और विशेषाधिकारों को खत्म कर क्रांति ने लोकतांत्रिक शासन की नींव रखी। इसके परिणामस्वरूप यूरोप और दुनिया भर में स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरणा मिली। नागरिक अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और गणराज्य की अवधारणा को क्रांति के आदर्शों ने नई दिशा दी। आधुनिक राष्ट्रों के निर्माण और सामाजिक सुधारों की शुरुआत में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।

Q4.) उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति में है।

उत्तर:- 

फ्रांसीसी क्रांति ने हमें कई ऐसे जनवादी अधिकार दिए जिनका प्रभाव आज भी हमारे जीवन में देखा जा सकता है। ये अधिकार समानता, स्वतंत्रता और न्याय के क्रांतिकारी आदर्शों से प्रेरित हैं। निम्नलिखित प्रमुख अधिकारों का उद्गम फ्रांसीसी क्रांति में है:

a) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:- लोगों को अपनी राय व्यक्त करने और विचार साझा करने का अधिकार मिला।
b) समानता का अधिकार:- जाति, धर्म या वर्ग के भेदभाव के बिना सभी को समान माना गया।
c) मतदान का अधिकार:- नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार प्रदान किया गया।
d) धर्म की स्वतंत्रता:- व्यक्ति को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने या न करने की स्वतंत्रता मिली।
e) कानून के समक्ष समानता:-  हर व्यक्ति को कानून की दृष्टि में समान माना गया, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि का हो।
इन अधिकारों ने न केवल फ्रांस बल्कि पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती दी।

Q5.) क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे?

उत्तर:- सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में कई अंतर्विरोध थे। क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का दावा किया, लेकिन महिलाओं को राजनीतिक अधिकार और मताधिकार से वंचित रखा गया। दास-प्रथा को खत्म किया गया, लेकिन नेपोलियन के शासन में फिर से लागू कर दिया गया। संपत्ति आधारित मताधिकार ने गरीबों और वंचितों को अधिकारों से दूर रखा, और उपनिवेशों में समान अधिकार लागू नहीं हुए।

हालांकि, इन विरोधाभासों के बावजूद, यह संदेश आगे चलकर अधिक व्यापक और समावेशी अधिकारों के लिए प्रेरणा बना।

Q6.) नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?

उत्तर:- नेपोलियन के उदय को विभिन्न परिस्थितियों और घटनाओं से समझा जा सकता है। फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक उथल-पुथल का माहौल था। डिरेक्ट्री सरकार के भ्रष्टाचार और कमजोर प्रशासन ने जनता में असंतोष को जन्म दिया। साथ ही, फ्रांसीसी सैन्य अभियान की सफलता ने नेपोलियन को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थापित किया।

नेपोलियन ने अपनी सैन्य रणनीतियों और नेतृत्व कौशल से फ्रांसीसी सेना को कई महत्वपूर्ण युद्धों में विजय दिलाई। इन विजयों के कारण उन्होंने जनता का विश्वास जीता। अंततः 1799 में कूलेट (राजनीतिक तख्तापलट) के जरिए उन्होंने सत्ता पर कब्जा किया और पहले कंसुल के रूप में शासन करना शुरू किया। उनके प्रशासन और सुधारों ने फ्रांस को एक नए दिशा में अग्रसर किया, जिससे उनकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई और वे सम्राट बने।

इस प्रकार, नेपोलियन का उदय फ्रांसीसी समाज में व्याप्त असंतोष, सैन्य सफलता और उसके नेतृत्व कौशल का परिणाम था।

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