jac board class 10 geography chapter 1 संसाधन एवं विकास Question Answer.

Jac Board Class 10 Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास Hindi Medium | Jac Board Solutions Class 10 भूगोल | Class 10 Geography chapter 1 संसाधन एंव विकास

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Jac Board Class 10 Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

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Jac Board Solutions Class 10 Geography Chapter 1:संसाधन एंव विकास

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  • syllabus के आधार पर 
  • पाठगत प्रश्न 
  • V.V.I MCQs (30)

Jac Board Class 10 Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास Question Answer.

अध्याय 1:संसाधन एंव विकास (Resources and Development)

संसाधन :-

◊ हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है संसाधन कहलाती हैं।

संसाधनों का वर्गीकरण

 उत्पत्ति के आधार पर:- जेव और अजेव

◊ समाप्यता के आधार पर:- नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य

◊ स्वामित्व के आधार पर:- व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय

◊ विकास के स्तर के आधार पर:- संभावी, संभावी विकसित भंडार और संचित कोष

उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण:-

◊ जैव संसाधनः- ऐसे संसाधन जो हमें जीवमंडल से प्राप्त होते हैं, एवं जिनमें जीवन है जैव संसाधन कहलाते हैं। जैसे:- मनुष्य, प्राणीजात आदि।

◊ अजैव संसाधनः- वे सभी संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते है। जैसे:- चट्टानें और धातुएँ।

समाप्यता के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण:-

◊ नवीकरणीय संसाधन:- वे संसाधन जिन्हें विभिन्न भौतिक, रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनः उपयोगी बनाया जा सकता है, नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे:- वायु ,जल आदि । 

◊ अनवीकरणीय संसाधन:- वे संसाधन जिन्हें एक बार उपयोग में लाने के बाद पुन: उपयोग में नहीं लाया जा सकता, इनका निर्माण एवं विकास एक लंबे भूवैज्ञानिक अंतराल में हुआ है, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे:- खनिज

स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण:-

◊ व्यक्तिगत संसाधनः- वैसे संसाधन व्यकतिगत संसाधन कहलाते हैं जिनका स्वामित्व निजी व्यक्तियों के पास होता है | उदाहरण:- किसी किसान की जमीन, घट, आदि।

◊ सामुदायिक संसाधन:- वे संसाधन जिनका उपयोग समुदाय के सभी लोग करते हैं, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं।

◊ राष्ट्रीय संसाधनः- किसी भी प्रकार के संसाधन जो राष्ट्र की भौगोलिक सीमा के भीतर मौजूद हों, राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं।

◊ अंतर्राष्ट्रीय संसाधन:- तट रेखा के 200 मील दूरी से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है। यह अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की निगरानी में हैं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय संसाधन कहते हैं।

विकास के स्तर के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण:-

◊ संभावी संसाधनः- वे संसाधन जो किसी प्रदेश में विद्यमान हैं, परंतु उनका उपयोग नहीं किया गया है संभावी संसाधन कहलाते हैं। 

◊ विकसित संसाधन:- वे संसाधन जिनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है विकसित संसाधन कहलाते हैं।

◊भंडारित संसाधन:- पर्यावरण में उपलब्ध वे संसाधन जो अभी प्रौद्योगिकी के अभाव में मानव की पहुंच से बाहर है भंडारित संसाधन कहलाते हैं।

◊ संचित संसाधन:- वे संसाधन जिन्हें अभी तकनीकी ज्ञान के उपयोग से प्रयोग में लाया जा सकता है, परंतु इनका उपयोग अभी आरंभ नहीं हुआ है संचित संसाधन कहलाते है।

संसाधनों का विकास:-

◊  मानव अस्तित्व के लिए संसाधन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ऐसा विश्वास किया जाता था कि संसाधन प्रकृति की देन है इसलिए मानव द्वारा इसका अंधाधुंध उपयोग किया गया जिसके फलस्वरूप निम्नलिखित मुख्य समस्याएँ पैदा हो गयी हैं।

  • कुछ व्यक्तियों के लालचवश संसाधनों का हास |
  • संसाधन समाज के कुछ ही लोगों के हाथ में आ गए हैं, जिससे समाज दो हिस्सों संसाधन संपन्न एवं संसाधनहीन अर्थात् अमीर और गरीब में बँट गया। संसाधनों के अंधाधुंध शोषण से वैश्विक पारिस्थितिकी संकट पैदा हो गया है जैसे:- भूमंडलीय तापन, ओजोन परत अवक्षय, पर्यावरण प्रदूषण और भूमि निम्नीकरण आदि हैं।

मानव जीवन की गुणवत्ता और वैश्विक शांति के लिए समाज में संसाधनों का न्यायसंगत बँटवारा आवश्यक हो गया है।

सतत् पोषणीय विकास:-

संसाधनों का ऐसा विवेकपूर्ण प्रयोग ताकि न केवल वर्तमान पीढ़ी की अपितु भावी पीढ़ियों की आवश्यकताएं भी पूरी होती रहें, सतत् पोषणीय विकास कहलाता है।

◊ एजेंडा 21 :- 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेटो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन के तत्वाधान में राष्ट्राध्यक्षों ने एजेंडा 21 पारित किया।

◊ उद्देश्य:- जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावणीय क्षति, गटीबी और टोगों से निपटना है।

संसाधन नियोजन:-

ऐसे उपाय अथवा तकनीक जिसके द्वारा संसाधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है संसाधन नियोजन कहलाता है।

भारत में संसाधन नियोजन:-

संसाधनों की मदद से समुचित विकास करने के लिये यह जरूरी है कि योजना बनाते समय टेक्नॉलोजी, कौशल और संस्थागत बातों का ध्यान रखा जाये।

प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही भारत में संसाधन नियोजन एक प्रमुख लक्ष्य रहा है।

 भारत में संसाधन नियोजन के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-

  • पूरे देश के विभिन्न प्रदेशों के संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना।
  • उपयुक कौशल, टेक्नॉलोजी और संस्थागत ढाँचे का सही इस्तेमाल करते हुए नियोजन ढाँचा तैयार करना।
  • संसाधन नियोजन और विकास नियोजन के बीच सही तालमेल बैठाना।

संसाधन संरक्षण:-

संसाधनों का उचित प्रबंधन ताकि जल, भूमि तथा – वनस्पति एवं मृदा का इस प्रकार से प्रयोग करना कि भावी पीढ़ी की जरूरतों का भी ख्याल रखा जाए।

भू-संसाधन

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भूमि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।

प्राकृतिक वनस्पति, वन्यजीवन, मानव जीवन, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन तथा संचार व्यवस्थाएं भूमि पर ही आधारित हैं।

भूमि एक सीमित संसाधन हैं इसलिए हमें इसका उपयोग सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए।

भारत में भूमि – संसाधन :-

लगभग 43 प्रतिशत भू – क्षेत्र मैदान हैं जो कृषि और उद्योग के विकास के लिए सुविधाजनक है।

लगभग 30 प्रतिशत भू क्षेत्र पर विस्तृत रूप से पर्वत स्थित हैं हमासी दियों के प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं, पर्यटन विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करता है और पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण है।

लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा पठारी क्षेत्र है जिसमें खनिजों, जीवाश्म ईंधन और वनों का अपार संचय कोष है।

भू-उपयोग:-

  •  भौगोलिक प्रक्रिया जिसके अनुसार भूमि का प्रयोग विभिन्न आर्धिक गतिविधियों के लिए किया जाता है।

 भू-उपयोग को निर्धारित करने वाले तत्व हैं:-

  • वन: पेड़ों से आच्छदित एक विशाल क्षेत्र |
  • कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि:- बंजर तथा कृषि अयोग्य भूमि गेट कृषि प्रयोजनों में लगाई गई भूमि – इमारतें सड़कें उद्योगा
  • परती भूमि:- वर्तमान परती- जहां कृषि एक वर्ष उससे कम समय खेती ना की गई हो। अन्य परती:- अन्य परती जहां 1-5 वर्ष से खेती न की गई हो।
  • अन्य कृषि योग्य भूमि:- स्थाई चरागाहें तथा अन्य गोचर भूमि विविध वृक्षों, वृक्ष फसलों तथा उपवन के अधिन भूमि कृषि योग्य बंजर भूमि जो 5 वर्षे या अधिक से खाली ।
  • शुद्ध बोया गया क्षेत्र:- एक कृषि वर्ष में एक बार से अधिक बोए गए क्षेत्र को शुद्ध बोया गया क्षेत्र कहते हैं।

भारत में भू उपयोग प्रारूप के प्रकार

भू -उपयोग को निर्धारित करने वाले तत्त्वों में भौतिक करक जैसे भू-आकृति, मृदा जलवायु और तथा मानवीय करक  जैसे – जनसंख्या घनत्व, प्रौद्योगिक क्षमता, संस्कृति और परंपराएँ  इत्यादि शामिल हैं।

भू- निम्नीकरण के कारण

  • खनन
  • अतिचारण
  • अतिसिंचाई
  • औद्योगिक प्रदूषण
  • वनोन्मूलन

भूमि संरक्षण के उपाए

  • वनारोपण
  • पशुचारण नियंत्रण
  • रक्षक मेखला 
  • खनन नियंत्रण
  • औद्योगिक जल का परिष्करण

मृदा संसाधन

मृदा एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी में ही खेती होती है। मिट्टी कई जीवों का प्राकृतिक आवास भी है।

मृदा का निर्माण :-

  • मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत धीमी होती है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मात्र एक सेमी मृदा को बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं।
  •  मृदा का निर्माण शैलों के अपघटन क्रिया से होता है। मृदा के निर्माण में कई प्राकृतिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है; जैसे कि तापमान, पानी का बहाव, पवन ।
  •  इस प्रक्रिया में कई भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों का भी योगदान होता है।

मृदा के प्रकार:-

लाल एंव पिली मृदा :-

brown sand texture

◊ जलोढ़ मृदा:- 

horizon with trees clear sky

काली मृदा :-

jac board class 10 geography chapter 1

◊ वन मृदा:

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◊ मरुस्थलीय मृदा :- 

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◊ लेटराईट मृदा:-

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लाल एवं पीली मृदा:-

  • लोहे के कणों की अधिकता के कारण रंग लाल तथा कहीं-कहीं पीला भी। 

  • अम्लीय प्रकृति की मिट्टी।

  •  चूने के इस्तेमाल से उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है। 

  • उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा के मैदान व गारो, खासी व जयंतिया के पहाड़ों पर पाई जाती है।

जलोढ़ मृदा :-

  • भारत के लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्रफल पर पाई जाती है।
  • इस मिट्टी में पोटाश की बहुलता होती है।
  • सिंधु, गंगा तथा ब्रहमपुत्र नदी तंत्रों द्वारा विकसिता
  • रेत, सिल्ट तथा मृतिका के विभिन्न अनुपात में पाए जाते है।
  • आयु के आधार पर पुरानी जलोढ़ (बांगर ) एवं नयी जलोढ़ (खादर)
  • बहुत उपजाऊ तथा गन्ना, चावल, गेहूँ आदि फसलों के लिए उपयोगी।

काली मृदा:-

  • रंग काला एवं अन्य नाम रेगर मृदा ।

  •  टिटेनीफेटस मेग्नेटाइट एवं जीवांश की उपस्थिति।

  • बेसाल्ट चट्टानों के टूटने फूटने के कारण निर्माण ।

  •  आयरन, चुना, एल्युमीनियम एवं मैग्निशियम की बहुलता।

  • कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्ता

  •  महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठारों में पाई जाती है।

वन मृदा:- 

  • पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

  • गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार बदलाव|

  • नदी घाटियों में मृदा दोमत  तथा सिल्टदार।

  •  अधिसिल्क  तथा ह्यूमस रहिता

मरुस्थलीय मृदा:-

  •   रंग लाल व भूरा
  • रेतीली तथा लवणीय 
  • शुष्क जलवायु तथा उच्च तापमान के कारण जल वाष्पन की दर अधिक|
  • ह्यूमस और नमी की मात्रा कमा
  • उचित सिचाई प्रबंधन के द्वारा उपजाऊ बनाया जा सकता है।

लेटराइट मृद्रा:-

  •  उच्च तापमान और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित। 
  • भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन का परिणाम 
  • चाय व काजू के लिए उपयुक्ता 
  • कर्नाटक, केरल तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा असम पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।

पहाड़ी पद ( पीडमाऊँट जॉन ):-

किसी पर्वत या पर्वत श्रृंखला के तल पर पाया जाने वाला क्षेत्र।उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट का पहाड़ी पद अर्थात पश्चिमी घाट के तल पर पाए जाने वाले क्षेत्र।

दक्कन ट्रेप

प्रायद्वीपीय पठार का काली मृदावाला क्षेत्र । इसका निर्माण लावा मिट्टी के द्वारा हुआ है। बहुत ही उपजाऊ क्षेत्र तथा कपास की खेती के लिए उपयुक्त है।

खादर एवं बांगर में अंतर

खादर बांगर 
1.नवीन जलोढ़ मृदा 1. प्राचीन  जलोढ़ मृदा|
2. अधिक बारीक  व रेतीला।2.कंकड़ व कैल्शियम
3. बार – बार  नवीकरण संभव 3 बार – बार नवीनकरण नही 

4.नदी के पास डेल्टा तथा  निर्मित मैदानों  में पाई जाती है।

4. नदी से दूर ऊँचे स्तर पर पाई जाती है |

मृदा अपरदन:-

मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रतिक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है।

मृदा अपरदन के कारण:-

  •  वनोन्मूलन।
  • अति पशुचारण।
  • निर्माण व खनन प्रक्रिया।
  • प्राकृतिक तत्व जैसे, पतन, हिमनदी और जल |
  • कृषि के गलत तरीकें (जुताई के तरीके )। 
  • पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र में मृदा को उड़ा ले जाना ।

मृदा अपरदन के समाधान:-

  • ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानंतर हल चलाने से।
  • ढाल वाली भूमि पर सीढी बना कर खेती करने से।
  • बड़े खेतों को पट्टियों में बांट कर फसलों के बीच में धास की पत्ती उगाकर
  • खेत के चारों तरफ पेड़ों को कतार में लगातार एक मेखला बनाना | वनरोपण।
  • अति पशुचारण को नियंत्रित करके ।

अवनलिकाएँ:-

  •  बहता हुआ जल मृत्तिकायुक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएं बनाता है, जिन्हें अवनलिकाएँ कहते हैं।

उत्खात भूमि:-

ऐसी भूमि जो जोतने योग्य नहीं रहती उसे उत्खात भूमि कहते हैं।

◊ खड्ड भूमि :-

  • चंबल बेसिन में इसे खड्ड भूमि कहते हैं।

पवन अपरदन:-

  • पवन द्वारा मैदान और ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहते हैं।

2024 Syllabus में शामिल जिसे पढ़ना ही है |

  • संसाधन के प्रकार 
  • संसाधनों का विकास 
  • संसाधन नियोजन 
  • भू-संसाधन 
  • भू – उपयोग 
  • भारत में भू – उपयोग प्रारूप 
  • भूमि निम्नीकरण और संरक्षण उपाय 
  • मृदा संसाधन 
  • मृदाओं का वर्गीकरण 
  • मृदा अपरदन और संरक्षण 

 Jac Board 2024  syllabus पर आधारित प्रश्न उत्तर |

Q1.) संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर:- संसाधन के दो प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित है –

  1. प्राकृतिक संसाधन :- इस प्रकार के संसाधन जो हमें प्रकृति ने प्रदान किये हैं एवं जिनके निर्माण में मानव की भूमिका बिल्कुल नहीं है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते है

  2. मानव निर्मित संसाधन :- मानव निर्मित संसाधन उत्पादन के वे साधन हैं, जिनका निर्माण मानव ने पर्यावरण के भौतिक पदार्थों का उपयोग करने के लिए किया है, जैसे-मशीनें, भवन, उपकरण आदि।

Q2.संसाधन नियोजन किसे कहते हैं ? 

उत्तर:- संसाधनों के योजनाबध्द तथा न्याय सांगत उपयोग को संसाधन नियोजन के नाम से जाना जाता है | संसाधनों का नियोजन निम्नलिखित दो कारणों से आवश्यक है – 

  1. संसाधनों की मात्रा सीमित है ,
  2. संसाधनों का वितरण असमान है |

Q3.)भू – संसाधन किसे कहते है ?

उत्तर:- किसी देश या क्षेत्र के भीतर शामिल भूमि को भूमि संसाधन कहा जाता है। इसके अंतर्गत कृषि योग्य भूमि, चारागाह भूमि, कृषि योग्य भूमि, बंजर भूमि, वन भूमि, बंजर भूमि, परती भूमि आदि शामिल हैं।

Q4.) भू – उपयोग किसे कहते हैं ?

उत्तर:- भूमि उपयोग पृथ्वी के किसी क्षेत्र का मनुष्य द्वारा उपयोग को सूचित करता है। … और अधिक तकनीकी भाषा में भूमि उपयोग को “किसी विशिष्ट भू-आवरण-प्रकार की रचना, परिवर्तन अथवा संरक्षण हेतु मानव द्वारा उस पर किये जाने वाले क्रिया-कलापों” के रूप में परिभाषित किया गया है।

Q5.) भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें |

उत्तर:- भारत में भू उपयोग का प्रारूप: स्थाई चारागाहों के अंतर्गत भूमि कम हो रही है, जिससे पशुओं के चरने में समस्या उत्पन्न होगी। शुद्ध बोये गये क्षेत्र का हिस्सा 54% से अधिक नहीं, यदि हम परती भूमि के अलावे भी अन्य भूमि शामिल कर लें। शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र का प्रारूप एक राज्य से दूसरे राज्य में बदल जाता है। पंजाब में 80% क्षेत्र शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है, वहीं अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और अंदमान निकोबार द्वीप समूह में यह घटकर 10% रह जाता है। गैरकानूनी ढ़ंग से जंगल की कटाई और अन्य गतिविधियों (सड़क और भवन निर्माण), आदि के कारण वन क्षेत्र बढ़ने की बजाय कम हो रहा है। दूसरी ओर जंगल के आस पास एक बड़ी आबादी रहती है जो वन संपदा पर निर्भर रहती है। इन सब कारणों से वनों में ह्रास हो रहा है।

Q6.) भूमि निम्नीकरण और संरक्षण उपाय  लिखें |

उत्तर:- भूमि के निम्नीकरण को निम्नलिखित तरीकों से कम किया जा सकता है, बल्कि रोका भी जा सकता है:

  1. वनारोपण करके।
  2. चरागाहों के उचित प्रबंधन तथा पशुचारण नियंत्रण से।
  3. पेड़ों की रक्षक मेखला बना कर मिट्टी का वायु तथा जल से अपरदन रोका जा सकता है।
  4. रेतीले टीलों को काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाकर।
  5. बंजर भूमि के उचित प्रबंधन से।
  6. खनन नियंत्रण से।
  7. औद्योगिक जल को परिष्करण के पश्चात ही विसर्जित कर जल तथ भूमि के प्रदूषण को कम कर।

Q7.) मृदा संसाधन किसे कहते हैं ?

उत्तर:- मृदा संसाधन (Mrida Sansadhan) सबसे महत्वपूर्ण नवीकरण योग्य प्रकृतिक संसाधन है। यह पौधो का विकास करती है और लाखो जीवो का पोषण करती है। मृदा बनने की प्रक्रिया मे उच्चावच, जनक शैल अथवा संस्तर शैल, जलवायु, वनस्पति, अन्य जैव पदार्थ और समय मुख्य कारक है।

Q8.) मृदाओं का वर्गीकरण कैसे होता है  |

उत्तर :-  भारतीय मिट्टी का सर्वेक्षण वि‍ष्‍लेश्‍ण कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने किया है। यहां पार्इ जाने वाली मि‍ट्टी के मुख्यतअ 5 प्रकार हैैै। जलोढ़ मिट्टी , काली मिट्टी , लाल मिट्टी , लैटेराइट मिट्टी (बलुई), तथा रेतीली (रेगिस्तानी मिट्टी)। जलोढ़ मिट्टी को दोमट और कछार मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है.

Q9.) मृदा अपरदन और संरक्षण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:- मिट्टी एक बहुत बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा है। यह पृथ्वी पर जीवन बनाये रखने में मदद करता है। अतः इसे संरक्षित रखना अत्यावशयक है। मिट्टी को किसी भी विनाशकारी प्रक्रिया तथा मृदा अपरदन (Soil Erosion) से बचाने की प्रक्रिया को मृदा संरक्षण (Soil Conservation) कहते हैं।

Q1.) बहु वैकल्पिक प्रश्न :-

(a) लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है?

(क)  नवीकरण योग्य
(ख) प्रवाह
(ग) जैव
(घ) अनवीकरण योग्य

उत्तर:- (घ) अनवीकरण योग्य

(b) ज्वारीय उर्जा निम्न में से किस प्रकार का संसाधन है?
{Jac Board Annual Exam. 2019 }

(क) पुन: पूर्ति योग्य
(ख) अजैव
(ग) मानवकृत
(घ) अचक्रीय

उत्तर:- (क) पुन: पूर्ति योग्य

(c) पंजाब में भूमि निम्नीकरण का निम्न में से मुख्य कारण क्या है?
{Jac Board Annual Exam. 2017 }

(क)  गहन खेती
(ख) अधिक सिंचाई
(ग) वनोन्मूलन
(घ) अति पशु चारण

उत्तर:- (ख) अधिक सिंचाई

(d) निम्नलिखित में से किस प्रांत में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है?
{Jac Board Annual Exam. 2015, 2018}

(क)  पंजाब
(ख) हरियाणा
(ग) उत्तर प्रदेश के मैदान
(घ) उत्तराखंड

उत्तर:- (घ) उत्तराखंड

(e) इनमें से किस राज्य में काली मिट्टी पाई जाती है?
{Jac Board Annual Exam. 2014, 2018}

(क)  जम्मू और कश्मीर
(ख) गुजरात
(ग) उत्तराखंड
(घ) झारखंड

उत्तर:- (ख) गुजरात

Q2.) पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
{Jac Board Annual Exam. 2010, 2015, 2018}

उत्तर:- पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी अपरदन की रोकथाम  लिए निम्न कदम उठाने चाहिए.
 

  • ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर जुदाई करनी चाहिए. इससे जल के बहाव की गति कम होती है.
  •  ढाल वाली भूमि पर सीढ़ी नुमा खेत बनाने चाहिए. इससे पानी के बहाव को कम किया जा सकता है.
  • फसलों के बीच घास की पेटी लगानी चाहिए. इससे पानी के बहाव को कम किया जा सकता है.
  • ढाल वाली भूमि पर वृक्षारोपण करना चाहिए. क्योंकि पेड़ों की जड़ें मिट्टी को पकड़े रहती है.
          उपरोक्त तरीकों से पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी अपरदन को रोका जा सकता है.

Q3.) 3 राज्यों के नाम बताइए जहां काली मिट्टी पाई जाती है. इस पर मुख्य रूप से कौन सी फसल उगाई जाती है?

उत्तर:- महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में काली मिट्टी पाई जाती है. काली मिट्टी में मुख्य रूप से कपास की फसल उगाई जाती है.

Q4.) जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दें|

उत्तर:-

  • जैव संसाधन :-वैसे संसाधन जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है उसे जैव संसाधन कहते हैं. जैसे:- पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मत्स्य, मानव इत्यादि.
  • अजैव संसाधन :- वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बनी है उसे अजैव संसाधन कहते हैं. जैसे चट्टानें, खनिज, मानव निर्मित कई (मोटर गाड़ी, संड़क, रेल आदि) वस्तुएँ इत्यादि.
♦ निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए:
 

Q1.) प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है?

{Jac Board Annual Exam. 2009, 2012, 2014, 2016}

उत्तर:- संसाधनों का उपभोग सांस्कृतिक विरासत जैसे- मनुष्य के ज्ञान, कौशल, प्रौद्योगिकी आदि पर निर्भर करता है. प्रौद्योगिकी विकास के कारण आर्थिक विकास संभव हुआ है. जिससे संसाधनों का उपभोग बड़ा है. यदि कोई क्षेत्र संसाधनों में धनी है लेकिन वहां प्रौद्योगिकी विकास नहीं हुआ है, तो इन उपलब्ध संसाधनों का उपभोग संभव नहीं है.  प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण ही विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों को भूगर्भ से निकालना संभव हो पाया है.

आदिम अवस्था में मनुष्य वनस्पति एवं पशुओं पर निर्भर था. धीरे-धीरे मनुष्य ने उन्नति की और उसने नवीन तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के बल पर प्रकृति के रहस्यों को पता लगाया और कल की प्राकृतिक संपदा को आज के संसाधनों में बदला. मनुष्य द्वारा संसाधनों का प्रयोग उसके प्रौद्योगिकी के स्तर पर निर्भर करता है. कोयला तथा पेट्रोलियम का प्रयोग आर्थिक स्तर पर तब तक नहीं हो पाया, जब तक भाप का इंजन और अंतर्दहन इंजन का आविष्कार नहीं हो गया.

अत: प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण ही संसाधनों का अधिक उपभोग हुआ है.

♦ कुछ अतिरिक्त प्रश्न जो इस अध्याय संसाधन एवं विकास से जैक बोर्ड में पूछे जा चुके हैं:

Q1.) मिट्टी अपरदन अथवा भू-क्षरण को रोकने के कुछ उपाय बताएं?
{Jac Board Annual Exam. 2011, 2013,}

 उत्तर :- जल , वन, वायु के जैसा है मिट्टी भी महत्वपूर्ण है. पेड़-पौधों एवं फसलों के विकास के लिए मिट्टी अति आवश्यक है. इसलिए मिट्टी अपरदन अथवा  भू – क्षरण की रोकथाम के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं.

  1.  समोच्च रेखीय जुताई के द्वारा ढाल वाली भूभाग में पानी के बहाव को कम करके.
  2. पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल वाली भूमि पर सीढ़ी नुमा खेत बनाकर जल के बहाव को कम करके.
  3. दो फसलों के बीच घास की पेटी लगाकर पानी के बहाव को कम करके.
  4. वृक्षारोपण कर मिट्टी के कटाव को कम करके, क्योंकि पेड़-पौधे मिट्टी को अपने जड़ों से पकड़े रहती है, जिससे मिट्टी का कटाव का होता है.
  5. पेड़ों को कतार में लगाकर शुष्क अथवा मरुस्थलीय क्षेत्रों में रक्षक मेखला बनाई जाती है. जिसे हवा का वेग कम हो जाता है.
  6.  पशुओं की बेरोकटोक चराई को रोक करके.
  7.  नदियों पर बांध बनाकर मिट्टी के कटाव को कम किया जा सकता है.
         उपरोक्त तरीकों से मिट्टी अपरदन अथवा भू क्षरण को रोका जा सकता है.

Q2.)समाप्यता के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण करें?
{Jac Board Annual Exam. 2009}

उत्तर:– समाप्यता के आधार पर संसाधनों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है.
(1) नवीकरण योग्य संसाधन
(2) अनवीकरणीय योग्य संसाधन

(1) नवीकरण योग्य संसाधन:-
इसके अंतर्गत व संसाधन आते हैं जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है. अथवा एक समय अंतराल पर हमें पुनः प्राप्त हो जाता है. उसे नवीकरण योग्य या पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहते हैं. जैसे:- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन, वन्य प्राणी, मृदा, मानव इत्यादि. इन संसाधनों को सतत् (प्रवाह) और जैव के रूप में भी विभाजित किया जा सकता है.
(A) सतत् (प्रवाह) :- पवन, सौर, जल इत्यादि.
(B) जैव :- वनस्पति, पशु पक्षी, मानव इत्यादि.

(2) अनवीकरणीय योग्य संसाधन:-
इन संसाधनों का विकास अथवा निर्माण एक लंबे भूवैज्ञानिक अंतराल (लाखों, करोड़ों साल) में होता है. खनिज और जीवाश्म ईंधन इसी प्रकार के संसाधन हैं. इनमें से कुछ ऐसे संसाधन हैं, जो पुनः चक्रीय हैं. जैसे- धातुएं (लोहा, तांबा, एल्युमिनियम आदि) और कुछ संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) अचक्रीय हैं. ये संसाधन एक बार प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं.

Q3.) संसाधन नियोजन क्या है, भारत में संसाधन नियोजन के सोपानों का विवरण दीजिए?
{Jac Board Comprtment Exam. 2009}

उत्तर:- संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है. संसाधनों के उपयोग या उपभोग के लिए संसाधनों का उचित प्रबंधन तथा उचित तकनीकी ज्ञान को ही संसाधन नियोजन कहते हैं. भारत में संसाधनों का वितरण असमान है तथा सीमित मात्रा में है. इस कारण संसाधनों के सतत् पोषणीय उपयोग के लिए संसाधन नियोजन आवश्यक है. भारत में संसाधन नियोजन की तीन प्रक्रिया (सोपान) है.

  1. प्रथम सोपान:-
    पहले सोपान के अन्तर्गत देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उसकी तालिका बनाना, सर्वेक्षण करना, मानचित्र बनाना तथा संसाधनों की मात्रा एवं गुणों का आकलन करना है.
  2. द्वितीय सोपान:-दूसरे स्तर पर संसाधन विकास योजनाएं लागू करने हेतु प्रौद्योगिकी, कौशल तथा संस्थागत ढांचा तैयार कर उत्पादन करना है अर्थात् संसाधनों से संबंधित कल कारखानों को लगाना है.
  3.  तृतीय सोपान:- तृतीय स्तर का संबंध संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजनाओं में समन्वय स्थापित करना है.

    इस प्रकार तीन सोपानों के तहत संसाधन नियोजन की प्रक्रिया संपन्न होती है.

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